सिख धर्म में राजनीति साथ-साथ समुंद्री हाल में चुनाव पर बयान..
धार्मिक और राजनीतिक नेतृत्व का साथ चलना सिख परंपरा का हिस्सा, समुंद्री हाल में चुनाव को बताया जायज…
अमृतसर : सिख धर्म में धर्म और राजनीति को अलग नहीं माना जाता, बल्कि दोनों को साथ लेकर चलने की परंपरा रही है। यही कारण है कि हाल ही में समुंद्री हाल में हुए चुनावों को लेकर जो विवाद और सवाल उठाए गए हैं, उन पर कई सिख नेताओं और विद्वानों का मानना है कि यह प्रक्रिया गलत नहीं है।
इतिहास में झाँकें तो सिख गुरुओं ने भी समाज और सत्ता दोनों में भागीदारी निभाई है। चाहे गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा मीरी-पीरी की स्थापना हो या गुरु गोबिंद सिंह जी की सैन्य तैयारी, सभी उदाहरण यह दर्शाते हैं कि सिख धर्म में राजनीति को धर्म से अलग नहीं रखा गया। इसी आधार पर समुंद्री हाल जैसे धार्मिक स्थान में चुनाव होना, सिख मर्यादा के अनुरूप माना जा सकता है।
कुछ लोगों का मानना है कि धार्मिक स्थल राजनीति से दूर होने चाहिए, लेकिन सिख परंपरा में गुरुद्वारों का प्रबंधन और नेतृत्व हमेशा से समुदाय के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता रहा है। ऐसे में चुनाव प्रक्रिया को धार्मिक मर्यादा के खिलाफ बताना एकतरफा नजरिया हो सकता है।
समुंद्री हाल में हुए चुनावों को लेकर जो प्रतिक्रियाएं आईं हैं, उनमें से कुछ राजनैतिक विरोध और कुछ विचारधारात्मक भिन्नता का परिणाम हो सकती हैं। लेकिन सिख समुदाय के एक बड़े वर्ग का मानना है कि यदि चुनाव पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत हो रहे हैं, तो इसमें कोई गलत बात नहीं है।
सिख धर्म में संगत (समुदाय) की भूमिका सर्वोपरि मानी जाती है, और संगत के निर्णय को गुरु का आदेश माना जाता है। ऐसे में यदि संगत चुनाव प्रक्रिया का समर्थन करती है, तो वह वैचारिक रूप से भी सही ठहराया जा सकता है।
समुंद्री हाल में चुनाव पर उठ रहे विवाद के बीच यह बहस फिर से ज़ोर पकड़ रही है कि सिख धर्म में राजनीति और धर्म को अलग किया जाए या नहीं। फिलहाल समुदाय में संतुलन और समझदारी के साथ इस विषय पर विमर्श ज़रूरी है, ताकि एकता बनी रहे और परंपरा का सम्मान भी हो।
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