हाईकोर्ट का निर्देश: छात्र कक्षा में रहें!
प्रदर्शन से पहले नियम मानें, संविधान का विरोध अधिकार भी सीमित नहीं — कोर्ट की सख्त टिप्पणी…..
चंडीगढ़ पंजाब यूनिवर्सिटी (PU), चंडीगढ़ में छात्रों के विरोध-प्रदर्शनों को लेकर चल रहे विवाद में अब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपनी सख्त राय जाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति स्वयं को छात्र कहता है, तो उसका स्थान कक्षा और लाइब्रेरी में होना चाहिए, न कि सड़कों पर विरोध करते हुए विश्वविद्यालय का माहौल खराब करने में।
बठिंडा निवासी परमप्रीत सिंह द्वारा दायर याचिका में यह कहा गया था कि छात्र प्रदर्शन का अधिकार रखते हैं और अगर वे पढ़ाई में बाधा नहीं डालते, तो प्रशासन को उन्हें रोकने का अधिकार नहीं होना चाहिए। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि संविधान ने सभी नागरिकों को विरोध करने का मूल अधिकार दिया है, और छात्रों को इससे वंचित करना न्याय संगत नहीं है।
हालांकि, अदालत ने यह साफ किया कि छात्रों को संविधान ने अधिकार तो दिए हैं, लेकिन इन अधिकारों का प्रयोग नियमों और अनुशासन के दायरे में ही होना चाहिए। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यदि छात्र अपने प्रदर्शन से अन्य विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित करते हैं, तो विश्वविद्यालय प्रशासन को कार्रवाई का पूरा अधिकार है।
कोर्ट ने इस मुद्दे को एक संवेदनशील संतुलन का विषय बताया — जहां छात्रों को अपनी आवाज़ उठाने की स्वतंत्रता हो, वहीं शिक्षण संस्थानों का शांतिपूर्ण वातावरण भी बरकरार रहना चाहिए।
यूनिवर्सिटी प्रशासन ने भी कोर्ट के समक्ष यह कहा कि हाल के वर्षों में कुछ छात्र संगठन बिना अनुमति के धरने, प्रदर्शन और क्लासरूम बंद कराने जैसी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं, जिससे अन्य छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हुई है।
हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में विश्वविद्यालयों में अनुशासनहीनता या अराजकता के नाम पर प्रदर्शन की कोई गुंजाइश नहीं होगी। छात्रों को अब यह समझने की जरूरत है कि विरोध करना एक अधिकार है, लेकिन उसे नियमों के तहत ही किया जाना चाहिए।