संघर्ष से उभरे मनोज तिवारी की कहानी
घाटों पर गाने गाए, भूखे सोए; आतंकवादी समझकर पुलिस ने पीटा, आज भोजपुरी सिनेमा के अमिताभ कहलाते हैं,….
वाराणसी : भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार और अब नेता बन चुके मनोज तिवारी की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। जीवन की शुरुआत बेहद संघर्षपूर्ण रही — कभी रोटी के लिए तरसना पड़ा, तो कभी घाटों पर गाकर पेट पालना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें पुलिस ने आतंकवादी समझकर पीटा। लेकिन इन्हीं संघर्षों से निकलकर मनोज तिवारी ने वो मुकाम हासिल किया कि आज उन्हें “भोजपुरी के अमिताभ बच्चन” कहा जाता है।
मनोज तिवारी उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास अटलापुर गांव से आते हैं। एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले तिवारी का शुरुआती जीवन बेहद कठिन रहा। युवावस्था में उन्होंने घाटों पर गाना गाकर अपना गुजारा किया। कभी-कभी तो उन्हें कई दिनों तक खाली पेट सोना पड़ता था।
एक घटना का जिक्र करते हुए तिवारी ने खुद बताया था कि कैसे एक बार उन्हें आतंकी समझकर पुलिस ने बुरी तरह पीटा था। उनके कपड़े और व्यवहार देखकर पुलिस को शक हुआ और उन्हें थाने में ले जाकर बेरहमी से मारा गया। बाद में जब सच्चाई सामने आई, तो उन्हें छोड़ दिया गया।
इन सभी परेशानियों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने संगीत में अपना करियर बनाना शुरू किया और धीरे-धीरे भोजपुरी एलबम और फिल्मों में गाने लगे। उनका गाया गीत “रिंकिया के पापा” आज भी भोजपुरी संगीत का एक यादगार गाना माना जाता है।
इसके बाद उन्होंने अभिनय में कदम रखा और कई हिट भोजपुरी फिल्मों में लीड रोल निभाए। उनके अभिनय और आवाज की वजह से उन्हें जल्द ही “भोजपुरी का अमिताभ बच्चन” कहा जाने लगा।
मनोज तिवारी ने राजनीति में भी कदम रखा और भारतीय जनता पार्टी से सांसद बने। आज वे न केवल एक सुपरस्टार हैं बल्कि एक प्रभावशाली राजनेता भी माने जाते हैं।
उनकी यह कहानी बताती है कि अगर हौसले बुलंद हों तो किसी भी संघर्ष को पार किया जा सकता है।
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