बैसाखी पर कीर्तन दरबार क्यों सजाया गया..
गुरबाणी की अमृतधारा से गूंजे गुरुद्वारे, श्रद्धालुओं ने कीर्तन में डूबकर मनाया पर्व..
अमृतसर सिटी : बैसाखी के पावन अवसर पर पंजाब भर के गुरुद्वारों में कीर्तन दरबार सजाए गए, जिनमें श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, पटियाला और मोगा सहित अन्य जिलों में गुरबाणी की मधुर ध्वनि से वातावरण भक्तिमय हो गया। यह विशेष दरबार बैसाखी पर्व को समर्पित थे, जो सिख धर्म के इतिहास में एक बेहद महत्वपूर्ण दिन है।
गुरुद्वारों में सुबह से ही श्रद्धालु नहाकर पहुंचे और पंक्तिबद्ध होकर अरदास में शामिल हुए। रागियों ने गुरबाणी का गायन किया, जिसमें “वाहेगुरु” की महिमा का बखान किया गया। लोगों ने श्रद्धा के साथ कीर्तन का रसपान किया और मन की शांति पाई। आयोजन के दौरान गुरुद्वारे फूलों और रोशनी से सजे रहे, जिससे वहां का माहौल अत्यंत आकर्षक और आध्यात्मिक हो गया।
बैसाखी केवल कृषि पर्व नहीं, बल्कि सिखों के लिए ऐतिहासिक महत्व भी रखती है। इसी दिन 1699 में दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस ऐतिहासिक क्षण की याद में हर साल यह पर्व उल्लास और श्रद्धा से मनाया जाता है। कीर्तन दरबारों के माध्यम से गुरु की शिक्षाओं का प्रचार किया गया और संगत को सेवा, भक्ति और एकता का संदेश दिया गया।
गुरुद्वारों में आयोजित लंगर में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया और सेवा का पुण्य भी कमाया। बच्चों और युवाओं ने भी कार्यक्रम में भाग लिया और बैसाखी के इतिहास व महत्व को समझा। कई स्थानों पर पंजाबी संस्कृति से जुड़े नृत्य और कविताएं भी प्रस्तुत की गईं।
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों ने श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षा, पानी और बैठने की उत्तम व्यवस्था की थी। पुलिस प्रशासन भी मुस्तैद रहा, जिससे पर्व शांतिपूर्वक सम्पन्न हुआ।
बैसाखी का यह आध्यात्मिक उत्सव, लोगों के लिए न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक भी बना रहा। इस मौके पर सभी ने गुरु साहिब से प्रदेश और देश में शांति, खुशहाली और एकता की अरदास की।
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