देश में पहली बार जयपुर में AI से कृत्रिम वर्षा
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देश में पहली बार जयपुर में AI से कृत्रिम वर्षा

रामगढ़ बांध में ऐतिहासिक परीक्षण, मौसम बदलाव की दिशा में बड़ा कदम

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जयपुर   भारत में मौसम विज्ञान और जल संकट समाधान की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया है। जयपुर के रामगढ़ बांध में पहली बार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक की मदद से कृत्रिम वर्षा कराने का परीक्षण किया जा रहा है। यह तकनीक भारत में पहली बार प्रयोग में लाई जा रही है और इसके सफल होने पर यह देशभर के सूखा प्रभावित इलाकों के लिए एक बड़ी राहत साबित हो सकती है।

जयपुर के रामगढ़ बांध का चयन इस परीक्षण के लिए इसलिए किया गया क्योंकि यह क्षेत्र लंबे समय से जल संकट से जूझ रहा है और बांध वर्षों से सूखा पड़ा है। विशेषज्ञों के अनुसार, AI तकनीक के माध्यम से बादलों की गतिविधियों को समझकर और उन्हें एक नियंत्रित प्रक्रिया से उत्तेजित कर वर्षा करवाई जाती है। यह तकनीक पहले अमेरिका, चीन और इजरायल जैसे देशों में इस्तेमाल हो चुकी है, लेकिन भारत में यह पहली बार हो रहा है। राजस्थान सरकार और मौसम वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। विशेषज्ञों ने बताया कि इस तकनीक में विमानों और विशेष प्रकार के यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है, जो बादलों में सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों का छिड़काव कर उन्हें वर्षा के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन इस बार, इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को जोड़ा गया है, जिससे यह और अधिक सटीक और नियंत्रित हो सके।

सरकार का कहना है कि यदि यह परीक्षण सफल होता है, तो इसे राज्य के अन्य सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी लागू किया जाएगा। इस तकनीक से न केवल जल संकट को दूर करने में मदद मिलेगी, बल्कि यह कृषि के लिए भी वरदान साबित हो सकती है, खासकर ऐसे समय में जब मानसून अस्थिर हो गया है और किसान मौसम पर पूरी तरह निर्भर नहीं रह सकते।

रामगढ़ बांध के आसपास रहने वाले ग्रामीणों में भी इस प्रयोग को लेकर उत्साह देखा जा रहा है। वर्षों से सूखा देखने के बाद लोगों की उम्मीदें फिर से जागी हैं। एक स्थानीय किसान ने बताया, “अगर बारिश हो गई, तो हमें पानी मिलेगा, खेती हो सकेगी और हमारी ज़िंदगी पटरी पर लौटेगी। हम सरकार का धन्यवाद करते हैं कि उन्होंने हमारे क्षेत्र को चुना।” वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि इस तकनीक को जिम्मेदारी से प्रयोग किया जाए, तो यह पर्यावरण के लिए नुकसानदायक नहीं होगी। हालांकि यह अभी एक परीक्षण स्तर पर है, लेकिन इसके परिणाम पूरे देश के लिए दिशा तय कर सकते हैं। रामगढ़ का यह प्रयोग भारत के मौसम और जलवायु विज्ञान के इतिहास में मील का पत्थर बन सकता है। अब निगाहें आने वाले कुछ दिनों में होने वाले परीक्षण के नतीजों पर टिकी हैं।

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