जीएमएसएच-16 में लिफ्ट खराब, मरीज बेहाल
मानवाधिकार आयोग ने लिया संज्ञान, हेल्थ डायरेक्टर से रिपोर्ट तलब….
चंडीगढ़ के सरकारी मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल (जीएमएसएच-16) में मरीजों और उनके परिजनों की मुश्किलें उस समय और बढ़ गईं जब अस्पताल की लिफ्ट कई दिनों से खराब पड़ी रही। यह समस्या इतनी गंभीर हो गई कि अब मानवाधिकार आयोग ने खुद इसका संज्ञान लेते हुए स्वास्थ्य निदेशक से रिपोर्ट मांगी है।
जीएमएसएच-16 एक छह मंजिला इमारत है, जहां प्रतिदिन सैकड़ों मरीज भर्ती रहते हैं और इलाज कराने आते हैं। यहां की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि रैंप की सुविधा केवल दूसरे तल तक ही सीमित है। जबकि अस्पताल के वार्ड और यूनिट दूसरे से लेकर छठे तल तक फैले हुए हैं। ऐसे में जब लिफ्ट खराब हो गई तो भर्ती मरीजों और उनके तीमारदारों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी।
परिजनों ने बताया कि स्ट्रेचर पर पड़े मरीजों को ऊपर वार्ड तक पहुंचाना लगभग असंभव हो गया है। मजबूरी में कई बार परिजन खुद मरीजों को हाथों से उठाकर सीढ़ियों से ऊपर ले गए। यह स्थिति मरीजों के लिए न केवल कष्टदायक है, बल्कि खतरनाक भी साबित हो सकती है। बुजुर्गों और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए तो यह स्थिति और भी कठिन है।
अस्पताल में भर्ती एक बुजुर्ग मरीज के बेटे ने कहा कि “मेरे पिता कार्डियक मरीज हैं और उन्हें बार-बार नीचे लाना पड़ता है, लेकिन लिफ्ट खराब होने के कारण हमें हर बार सीढ़ियों से गुजरना पड़ता है। यह उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद जोखिम भरा है।” इसी तरह कैंसर और ऑर्थोपेडिक वार्ड में भर्ती मरीजों को भी भारी दिक्कतें आईं।
लिफ्ट खराब होने की शिकायत लंबे समय से प्रशासन तक पहुंच रही थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यही वजह रही कि यह मामला मानवाधिकार आयोग तक पहुंच गया। आयोग ने इसे मरीजों के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए हेल्थ डायरेक्टर से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
अस्पताल प्रशासन का कहना है कि तकनीकी खराबी के चलते लिफ्ट बंद हुई है और मरम्मत का काम जारी है। जल्द ही समस्या का समाधान कर लिया जाएगा। हालांकि मरीजों और उनके परिजनों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब लिफ्ट खराब हुई है। बार-बार ऐसी दिक्कतें आती रहती हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से स्थायी समाधान नहीं किया जाता।
इस घटना ने एक बार फिर सरकारी अस्पतालों की व्यवस्थाओं और उनकी लापरवाहियों को उजागर कर दिया है। मरीजों का कहना है कि अगर आधुनिक सुविधाओं वाले शहर चंडीगढ़ में भी ऐसी स्थिति है, तो दूर-दराज के इलाकों के अस्पतालों की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
सोशल मीडिया पर भी यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग कह रहे हैं कि स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सेवाओं में ऐसी लापरवाही किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। मरीजों के साथ ऐसा व्यवहार असंवेदनशीलता को दर्शाता है।
मानवाधिकार आयोग का संज्ञान लेना निश्चित ही मरीजों के लिए राहत की उम्मीद जगाता है। अब देखना यह होगा कि हेल्थ डायरेक्टर की रिपोर्ट के बाद इस समस्या का स्थायी समाधान निकलता है या फिर यह मामला भी बाकी फाइलों की तरह दबा दिया जाएगा।
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