कागजों में उलझा विकास, सपने अधूरे
चंडीगढ़ के मेट्रो, फिल्म सिटी और एजुकेशन हब वर्षों से इंतजार में, लोग कर रहे हैं बदलाव की उम्मीद….
चंडीगढ़, जिसे देश का पहला योजनाबद्ध शहर कहा जाता है, बीते दो दशकों से बड़ी-बड़ी विकास परियोजनाओं के वादों में उलझा हुआ है। हर सरकार आई और चली गई, लेकिन मेट्रो, फिल्म सिटी और एजुकेशन सिटी जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स अब तक सिर्फ फाइलों में ही सिमटे हैं। अमर उजाला की ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया कि ये सभी योजनाएं सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गईं, ज़मीनी स्तर पर इनका कोई अता-पता नहीं है।
स्थानीय नागरिकों की मानें तो मेट्रो प्रोजेक्ट की चर्चा 2003 में शुरू हुई थी। उम्मीद थी कि चंडीगढ़ को भी दिल्ली और जयपुर जैसे शहरों की तरह मेट्रो कनेक्टिविटी मिलेगी, जिससे ट्रैफिक का बोझ कम होगा और लोगों की आवाजाही आसान बनेगी। पर आज 2025 में भी मेट्रो की सिर्फ बातें हो रही हैं, न कोई निर्माण, न कोई शुरुआत।
इसी तरह फिल्म सिटी प्रोजेक्ट को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे। कहा गया था कि पंजाब और हरियाणा के कलाकारों को एक मंच मिलेगा, स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। लेकिन फिल्म सिटी भी केवल योजनाओं में रह गई। आज वहां सिर्फ बंजर ज़मीन है और उस पर लगे साइनबोर्ड, जो अब मिटने लगे हैं।
एजुकेशन सिटी का सपना भी चंडीगढ़ के युवाओं की उम्मीदों से जुड़ा था। राज्य सरकार और शिक्षा विभाग ने कई बार इसका खाका पेश किया, लेकिन अमल आज तक नहीं हो पाया। निजी और विदेशी विश्वविद्यालयों को लाने की बातें जरूर हुईं, पर ज़मीन का आवंटन, नीति निर्धारण और फंडिंग जैसे मसले कभी हल नहीं हो पाए।
चंडीगढ़ के निवासी अब इन खोखले वादों से थक चुके हैं। सेक्टर 38 में रहने वाले संजय गुप्ता कहते हैं, “हर चुनाव में नेता बड़े-बड़े सपने दिखाते हैं, पर हर बार हम ठगे जाते हैं। शहर का विकास सिर्फ घोषणाओं तक सीमित रह गया है।” वहीं, युवाओं का कहना है कि उन्हें पढ़ाई और रोजगार के लिए अन्य शहरों की ओर रुख करना पड़ता है क्योंकि यहां कोई ठोस प्लेटफॉर्म नहीं मिल पाया।
सवाल ये है कि आखिर चंडीगढ़ जैसे उन्नत शहर में योजनाओं के बावजूद विकास क्यों रुका हुआ है? प्रशासनिक पेच, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और जमीनी पहल की धीमी गति इसके मुख्य कारण बताए जा रहे हैं।
सरकारें आती-जाती रहेंगी, लेकिन अगर योजनाओं को धरातल पर नहीं उतारा गया तो चंडीगढ़ का भविष्य केवल फाइलों और घोषणाओं तक ही सीमित रह जाएगा। शहर के लोगों की मांग है कि अब सिर्फ वादे नहीं, अमल की ज़रूरत है।
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