हिंदी सिनेमा की सबसे यादगार फिल्मों में से एक ‘शोले’ के 50 साल पूरे हो गए हैं। इस खास मौके पर फिल्म के मशहूर अभिनेता असरानी ने ‘भास्कर’ से बातचीत में फिल्म की मेकिंग से जुड़ी कई अनसुनी बातें साझा कीं। असरानी, जिन्होंने फिल्म में जेलर का हास्यपूर्ण किरदार निभाया था, ने बताया कि जब ‘शोले’ रिलीज हुई थी, तब शुरुआती दिनों में दर्शकों की प्रतिक्रिया उम्मीद के मुताबिक नहीं थी और थिएटर खाली-खाली नजर आते थे। यह देखकर वह गहरे अवसाद में चले गए थे।
असरानी ने कहा कि फिल्म की रिलीज के पहले कुछ हफ्तों तक उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इतनी मेहनत से बनी यह भव्य फिल्म दर्शकों के दिल तक क्यों नहीं पहुंच पा रही है। लेकिन कुछ ही समय बाद ‘शोले’ ने ऐसा मोड़ लिया कि वह भारतीय सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर बन गई। दर्शकों ने फिल्म को हाथों-हाथ लिया और यह सुपरहिट हो गई।
उन्होंने अमजद खान से जुड़ा एक भावुक किस्सा भी साझा किया। असरानी के मुताबिक, गब्बर सिंह का किरदार निभाने वाले अमजद खान को अचानक मिली लोकप्रियता ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया था। एक दिन वे असरानी के सामने फूट-फूटकर रो पड़े और बोले कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि इतनी पॉपुलैरिटी को कैसे संभालें। अमजद के लिए यह अनुभव नया और भावनात्मक था, क्योंकि गब्बर का किरदार उन्हें रातोंरात घर-घर में मशहूर कर गया था।
असरानी ने बताया कि ‘शोले’ के सेट पर माहौल परिवार जैसा था। रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी इस फिल्म की शूटिंग के दौरान हर कलाकार एक-दूसरे से बेहद घुल-मिलकर काम करता था। उन्होंने कहा कि फिल्म के संवाद, एक्शन, संगीत और कलाकारों की एक्टिंग—हर चीज़ इतनी सशक्त थी कि यह फिल्म समय के साथ और भी प्रासंगिक होती चली गई।
उन्होंने याद किया कि कैसे गब्बर सिंह के डायलॉग “कितने आदमी थे” और उनके जेलर के कॉमिक सीन लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए। असरानी का मानना है कि ‘शोले’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है, जिसने पीढ़ियों को जोड़ा है।
आज, 50 साल बाद भी ‘शोले’ को दर्शक उसी उत्साह से देखते हैं। असरानी ने कहा कि यह फिल्म उनके करियर की सबसे अहम उपलब्धियों में से एक है और उन्हें गर्व है कि वह इसका हिस्सा रहे। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सिनेमा में ऐसी फिल्में बहुत कम बनती हैं, जो समय की कसौटी पर खरी उतरें और लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहें।
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