हरियाणा सरकार का कारनामा: रिश्वतकांड में फंसे DSP को सिर्फ ट्रांसफर किया, सस्पेंड क्यों नहीं?
ACB ने ₹2.6 करोड़ खर्च, ₹26 लाख ही आय दर्ज की; 4 महीने बाद मिली ‘ट्रांसफर’ की सज़ा—सरकार की कार्रवाई पर सवाल……
हरियाणा की सैनी सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे एक DSP के खिलाफ ठोस कदम उठाने में नाकाम साबित हुई है। आरोप है कि वह रिश्वत मांगने— विशेष रूप से शिकायत रद्द करवाने के मकसद से—कतई सक्रिय था। चार महीने तक केवल प्रतीक्षा की गयी और ज़िम्मेदारी से हटाकर उसे दूसरे जिले में ट्रांसफर कर दिया गया, जबकि आम तौर पर ऐसे मामलों में तत्काल निलंबन या सस्पेंशन की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
यह पूरा मामला तब सामने आया जब DSP गुरशेर सिंह संधू के खिलाफ ACB ने जांच की शुरुआत की। जांच में सामने आया कि DSP ने अपनी कमाई के रूप में ₹26 लाख घोषित किए, लेकिन उसकी खर्चीश ₹2.6 करोड़ रिकार्ड हुई—मतलब एक बड़ा धन स्त्रोत स्पष्ट नहीं। उसके ऊपर भ्रष्टाचार निरोधक कार्रवाई का अमल हो चुका है और इस सिलसिले में उसे इनामी घोषित भी किया गया, जिसका मतलब है कि वह ACB के ‘वांटेड’ लिस्ट में शामिल किया गया। यह वही संस्था है जो भ्रष्टाचार को रोकने और सख्त कार्रवाई के लिए जानी जाती है
ACB की साफ-साफ रिपोर्ट और तथ्यों के बावजूद, सरकार ने इस अधिकारी को न तो निलंबित किया और न तक जिम्मेदारी से हटाया—बल्कि केवल ट्रांसफर की सज़ा दी। इससे सवाल उठते हैं कि क्या सरकार सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर केवल दिखावटी कदम उठा रही है?
राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में यह मामला जमकर चर्चा का विषय बना हुआ है। आलोचकों द्वारा इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की कथित कार्रवाइयों का पैबंद बताते हुए चुटीले अंदाज़ में कहा जा रहा है कि ‘ट्रांसफर ही सजा है’।
इस पूरे प्रवाह से यह भी स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाएं—जैसे ACB—कितनी प्रभावशाली होंगी, अगर सरकारी स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना कमजोर हो। अब सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार आगे किसी जांच एजेंसी के आदेशों का पालन करने को मजबूर होगी, या फिर ट्रांसफर की ही आदत जारी रहेगी।