बर्मिंघम : क्रिकेट का खेल अनिश्चितताओं का होता है, लेकिन बर्मिंघम टेस्ट ने तो इतिहास ही पलट दिया। भारत और इंग्लैंड के बीच खेले गए पहले टेस्ट मैच में भारतीय टीम ने पांच शतक जड़े, फिर भी मैच हार गई। यह सुनने में जितना चौंकाने वाला है, आंकड़ों में उतना ही ऐतिहासिक — और दुर्भाग्यपूर्ण भी।
148 साल के टेस्ट क्रिकेट इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी टीम के पांच बल्लेबाज़ों ने शतक बनाए हों और वह टीम फिर भी मुकाबला हार जाए। भारत अब इस अनचाहे रिकॉर्ड का हिस्सा बन चुका है।
रोहित शर्मा, शुभमन गिल, विराट कोहली, यशस्वी जायसवाल और रवींद्र जडेजा ने शानदार पारियां खेलीं। हर शतक पर स्टैंड्स में तालियां गूंजती रहीं, सोशल मीडिया पर तारीफें आती रहीं। लेकिन इस बल्लेबाज़ी के जश्न के बीच गेंदबाज़ी ने साथ नहीं दिया।
इंग्लैंड ने जवाब में ज़्यादा शतक भले न मारे हों, लेकिन उन्होंने जिस आक्रामक अंदाज़ में रन बनाए और अंतिम पारी में भारत के गेंदबाज़ों को पूरी तरह थका दिया, उसने मैच का रुख पलट दिया। इंग्लैंड के जो रूट और हैरी ब्रूक ने शतक लगाकर टीम को मजबूत स्थिति में ला दिया, और अंतिम दिन के सेशन में भारतीय बल्लेबाज़ टिक नहीं पाए।
मैच खत्म होते ही हर भारतीय फैन की आंखों में एक ही सवाल था — इतनी शानदार बल्लेबाज़ी के बाद भी हार कैसे? शायद जवाब गेंदबाज़ी और रणनीति में छिपा है।
पूर्व कप्तान अनिल कुंबले ने कहा, “इतने शतक बनाने के बाद भी हारना इस बात का संकेत है कि संतुलन बिगड़ा हुआ है।”
अब कोचिंग स्टाफ और कप्तान पर सवाल उठने लगे हैं। टीम इंडिया के लिए यह हार सिर्फ एक मैच नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण का मौका है — कि क्या हम टेस्ट क्रिकेट में वही फोकस और गहराई बरकरार रख पा रहे हैं जो जीत के लिए ज़रूरी है?
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