कुलदीप धालीवाल का मंत्री पद जाने की इनसाइड स्टोरी
नशा तस्करों को छुड़ाने का आरोप लगा; 20 महीने ऐसे विभाग के मंत्री बने रहे, जो था ही नहीं…..
पंजाब : कैबिनेट मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल एक बार फिर खबरों में हैं, लेकिन dismissal ना होकर दूसरे आरोपों से। भाजपा नेता अनिल सरीन की तरफ से धालीवाल पर नशा तस्करों को छोड़ने और कानून को प्रभावित करने का आरोप लगाया गया। इस मामले की असल कहानी कहीं ज़्यादा पेचीदा है।
एक एनालिसिट के अनुसार, धालीवाल ने 28 मई को लखोवाल गाँव में पुलिस द्वारा नशा उपयोग करने वालों को गिरफ्तार किए जाने के मामले में हस्तक्षेप किया था। पुलिस की कार्रवाई में उस समय छह-से-सात युवाओं को पकड़ा गया था। आरोप था कि दो युवकों को छुड़ाया गया कि वे केवल नशा प्रयोगकर्ता थे, तस्कर नहीं। धालीवाल के अनुसार जागरूक ग्रामीणों ने उनसे संपर्क कर यह मामला उठाया, जिसे दिल्ली से लौटे मंत्री ने एसएचओ से बात कर वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में पहुंचाया।
धालीवाल ने कहा कि उन्होंने दोनों युवकों की हालत समझी, जब पता चला कि उनमें से एक नशा छोड़े लौट रहा था। उन्होंने उसे रिहैबिलिटेशन सेंटर भेजे जाने की सिफ़ारिश की, न कि जेल — जबकी असली तस्करों के ख़िलाफ़ FIR दर्ज करवाई गई। यह कार्रवाई उनके वर्षों पुराने नशा विरोधी अभियान की कार्यवाई को दर्शाती है, जिसमें न केवल गिरफ्तारियां हुईं, बल्कि बड़ी तादाद में नशीले पदार्थ भी ज़ब्त हुए।
हालांकि भाजपा नेताओं ने इसे राजनीति का हिस्सा बताते हुए आरोप लगाया कि धालीवाल एक महत्त्वपूर्ण विभाग का मंत्री बने रहे, लेकिन उसका उस NRI विभाग का अस्तित्व तक नहीं था। विपक्ष ने उनके 20 महीने के कार्यकाल को ‘खोता-बिलकुल मृग’ बताया, जहां मंत्री पद तो मिला लेकिन योग्यता और जिम्मेदारी का स्पष्ट संबंध कहीं नहीं दिखा।
धालीवाल ने इस आरोप का खुलकर मुकाबला करते हुए कहा , “भाजपा द्वारा लगाए गए सभी आरोप संदिग्ध हैं और यह एक साजिश का हिस्सा है। उन्होंने कड़ा संकेत दिया कि यदि अनिल सरीन अपने बयान वापस नहीं लेते, तो वे उन्हें कानूनी नोटिस भेजने का रास्ता चुनेंगे।”
इस पूरे विवाद की वजह से सार्वजनिक दृष्टि में कई महत्वपूर्ण सवाल उठ खड़े होते हैं — क्या भाजपा का खेल सिर्फ सियासी कमज़ोरी को दिखाने पर केन्द्रित है, या पंजाब की नशामुक्ति की दिशा में वास्तविक कार्रवाई हो रही है?
क्या मंत्री का हस्तक्षेप सिस्टम की प्रक्रिया को प्रभावित करता है या पीड़ित परिवारों की संवेदनशीलता को आत्मसात करता है?