किरण चौधरी का कांग्रेस अध्यक्ष पर तंज़
‘चमचे’ अध्यक्ष की जगह राजपूत राय को बनाएं, खूब चर्चा छिड़ी
भिवानी राजनीतिक गलियारों में फिर एक तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है जब भाजपा की नेता किरण चौधरी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर विवादास्पद टिप्पणी की। उन्होंने कही कि अगर कांग्रेस चमचों को अध्यक्ष बनाती रहेगी तो बेहतर होगा कि “राव दान” ही उस पद पर आ जाए, क्योंकि चाय वाले, बिस्कुट डुबोने वाली श्रुति और अन्य चमचों ने पार्टी को खाली प्रतिष्ठा पर लाकर खड़ा कर दिया।
चतुर्भुज चौधरी, जिन्हें ‘श्रुति बिस्कुट डुबोने की मंत्री’ कहा जा रहा है, चौधरी ने तेज़ी से पलटवार किया। उन्होंने कहा कि चौधरी सिर्फ अपने परिवार का नाम चमका रही हैं और अगर कांग्रेस अध्यक्ष पद को चाय या बिस्कुट पर मंथन करना चाहती है तो उन्हें खुद नेता बनना चाहिए। इस वाकयुद्ध ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी।
कांग्रेस के करीबी नेता बताते हैं कि चौधरी की टिप्पणी साफ़तौर पर कवरेज पाने की चाल है, लेकिन इससे कांग्रेस भीतर खलबली मची है। ‘राव दान’ शब्द का प्रयोग ठीक नहीं माना जा रहा क्योंकि यह राजपूत रीति-रिवाज़ों का अपमान है। दूसरी ओर, भाजपा में इसे राजनीतिक सफलता समझा जा रहा है क्योंकि विपक्ष की आंतरिक कलह बाहर दिख रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर गतिरोध बना हुआ है। सोनिया गांधी की वरिष्ठता और राहुल गांधी की सक्रियता के बीच वैसे भी कई सवाल उठ रहे थे। कांग्रेस विधायकों और प्रदेशाध्यक्षों की मीटिंगें चल रही हैं, लेकिन कोई स्पष्ट समाधान अभी नहीं निकला है। इस बीच पलटवार के स्वर से इसका फायदा भाजपा को भी होता दिख रहा है क्योंकि विपक्ष की तबाही पर केन्द्रित होकर वह अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बयानबाजी की इस सीरीज से केवल सोशल मीडिया पर चर्चाएँ बढ़ेंगी, लेकिन वास्तविक राजनीति प्रभावित होगी या नहीं, यह आगे समय बताएगा। यह भी देखा जाना बाकी है कि क्या कांग्रेस इस आंतरिक विवाद को सुलझा पाती है और दलित-बहुजन चतुष्कोण में कोई नया समीकरण तैयार कर पाती है या नहीं।
इस बीच जनता की राय विविध है। कुछ लोग इसे केवल राजनीतिक पैंतरेबाज़ी मान रहे हैं जबकि कुछ का विश्वास है कि बयानबाज़ी ने विपक्ष की मजबूती और लोकतांत्रिक गरिमा दोनों को चोट पहुंचाई है।
आने वाले दिनों में इस बयान से उठी हलचल का असर नीची राजनीति पर, कांग्रेस की साख पर और आगामी चुनावों की रणनीतियों पर कैसा होगा, यह नज़र बनाए रखना राजनीतिक विश्लेषकों के लिए दिलचस्प रहेगा।
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