भारत-रूस की साझेदारी को मिलेगी नई उड़ान
मास्को रवाना हुए विदेश मंत्री.....
विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत-रूस संबंधों को मजबूत बनाने के लिए जल्द ही करेंगे रूस की यात्रा
नई दिल्ली: भारत और रूस के बीच दशकों से गहरे और भरोसेमंद रिश्ते रहे हैं। इन्हीं संबंधों को नई ऊर्जा देने के लिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर मास्को रवाना हुए हैं। उनकी यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब वैश्विक स्तर पर कई भू-राजनीतिक परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। खासकर, रूस पर पश्चिमी देशों और अमेरिका के टैरिफ व आर्थिक प्रतिबंधों ने नई परिस्थितियाँ पैदा कर दी हैं, जिनमें भारत-रूस साझेदारी का महत्व और बढ़ गया है।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, जयशंकर की इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य रक्षा, ऊर्जा, व्यापार और निवेश सहयोग को नई गति देना है। भारत के लिए रूस लंबे समय से एक भरोसेमंद रक्षा साझेदार रहा है। आज भी भारतीय सेनाओं के लिए अधिकांश सैन्य उपकरण रूस से ही आते हैं। इस यात्रा के दौरान संयुक्त उत्पादन और तकनीकी सहयोग पर भी विस्तार से चर्चा होगी।
ऊर्जा सहयोग इस दौरे का दूसरा अहम पहलू है। रूस भारत को बड़ी मात्रा में कच्चा तेल और गैस आपूर्ति करता है। पश्चिमी टैरिफ नीतियों और अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने रूस से तेल आयात जारी रखा है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा को मजबूती मिली है। अब उम्मीद है कि जयशंकर की यह यात्रा दीर्घकालिक ऊर्जा समझौतों और नए निवेश के रास्ते खोलेगी।
व्यापारिक रिश्तों को भी नई ऊँचाई देने का प्रयास होगा। दोनों देशों ने आगामी वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार को 100 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। इस दिशा में टैरिफ बाधाओं को कम करने, भुगतान प्रणाली को सरल बनाने और निवेशक हितों की रक्षा पर विशेष बातचीत होगी।
कूटनीतिक रूप से भी यह यात्रा अहम मानी जा रही है। भारत और रूस ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे का साथ दिया है, चाहे वह ब्रिक्स (BRICS) हो, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) या संयुक्त राष्ट्र। जयशंकर की यह पहल दोनों देशों को वैश्विक राजनीति में और सशक्त बनाएगी।
हालाँकि भारत के सामने चुनौती यह भी है कि वह पश्चिमी देशों और अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को संतुलित बनाए रखे। अमेरिका के टैरिफ और रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच भारत को कूटनीति का संतुलन साधना होगा।
कुल मिलाकर, जयशंकर की मास्को यात्रा भारत-रूस रिश्तों में नई उड़ान भरने का अवसर है। इससे रक्षा, ऊर्जा और व्यापारिक सहयोग को नई दिशा मिलने की उम्मीद है, जबकि बदलते वैश्विक हालात में भारत अपनी कूटनीति को और सशक्त बना सकता है।
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