पंजाब की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार में माझा क्षेत्र की पकड़ कमजोर होती जा रही है। 2022 में जब भगवंत मान की सरकार बनी थी, तब माझा क्षेत्र से पांच विधायकों को मंत्री पद दिया गया था। लेकिन अब यह संख्या घटकर केवल तीन रह गई है। हाल ही में हुए विभागीय फेरबदल में हरभजन सिंह ETO से एक अहम विभाग लेकर सरकार ने बड़ा संदेश देने की कोशिश की है।
राजनीतिक हलकों में इस बदलाव को तरनतारन उपचुनाव से पहले एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। पंजाब की राजनीति में माझा क्षेत्र हमेशा से अहम भूमिका निभाता रहा है। यहाँ की सीटें सत्ता समीकरण तय करने में बड़ी भूमिका निभाती हैं। लेकिन अब जब मंत्री पदों में कटौती हुई है, तो इसे लेकर क्षेत्र के नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ने की आशंका है।
AAP सरकार के शुरुआती कार्यकाल में माझा से पाँच चेहरे मंत्रिमंडल का हिस्सा बने थे। इस क्षेत्र को मजबूत प्रतिनिधित्व मिलने से वहाँ के लोगों में उत्साह था। लेकिन समय बीतने के साथ राजनीतिक परिस्थितियाँ बदलीं और विभागों के बंटवारे में माझा का प्रतिनिधित्व सीमित होता गया। अब केवल तीन मंत्री ही बचे हैं, जिससे यह संकेत मिल रहा है कि सरकार का फोकस मालवा और दोआबा पर अधिक है।
पूर्व क्रिकेटर और मौजूदा मंत्री हरभजन सिंह ETO से विभाग लिया जाना सबसे चर्चित फैसला रहा। क्रिकेट के मैदान से राजनीति में कदम रखने वाले हरभजन सिंह को 2022 में मंत्री बनाकर पार्टी ने युवाओं और खेल प्रेमियों को बड़ा संदेश दिया था। लेकिन अब उनसे विभाग छीने जाने को लेकर राजनीतिक चर्चा तेज हो गई है।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि तरनतारन उपचुनाव से पहले यह कदम आम आदमी पार्टी का संतुलन साधने का प्रयास है। उपचुनाव में जीत पार्टी के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे न केवल विधानसभा में उसकी संख्या मजबूत होगी बल्कि आने वाले लोकसभा चुनावों से पहले जनता के बीच उसकी पकड़ भी मजबूत होगी।
दूसरी ओर, कांग्रेस और अकाली दल जैसे विपक्षी दल इस मुद्दे को हाथ से जाने नहीं देना चाहते। वे लगातार यह सवाल उठा रहे हैं कि माझा क्षेत्र को नज़रअंदाज़ क्यों किया जा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि AAP सरकार क्षेत्रीय संतुलन बनाने में असफल रही है और यह असंतोष आगे चलकर पार्टी को भारी पड़ सकता है।
माझा क्षेत्र के लोगों की भी अपेक्षाएँ बढ़ी हुई हैं। वे चाहते हैं कि यहाँ के प्रतिनिधियों को पर्याप्त जिम्मेदारियाँ और मंत्री पद दिए जाएं ताकि क्षेत्र के विकास कार्य तेज़ी से आगे बढ़ सकें। लेकिन हालिया फेरबदल ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
अब सभी की निगाहें तरनतारन उपचुनाव और आने वाले महीनों में सरकार के फैसलों पर होंगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि AAP सरकार इस असंतोष को कैसे संभालती है और क्षेत्रीय समीकरणों को किस तरह संतुलित करती है।
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