हरियाणा में आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत गरीब मरीजों को मिलने वाली मुफ्त चिकित्सा सेवाएं अभी भी ठप पड़ी हैं। सरकार और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के बीच मंगलवार को प्रस्तावित बैठक अचानक स्थगित कर दी गई, जिससे मरीजों की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है।
सूत्रों के अनुसार, प्रदेशभर में 675 निजी अस्पताल सरकार के पैनल में शामिल हैं, लेकिन पिछले 12 दिनों से ये अस्पताल आयुष्मान योजना के तहत मरीजों का इलाज नहीं कर रहे। वजह है कि सरकार की ओर से समय पर भुगतान नहीं किया गया। वित्त विभाग ने भले ही 291 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि की स्वीकृति दे दी हो, लेकिन जब तक यह राशि अस्पतालों तक नहीं पहुँचती और सरकार-आईएमए के बीच वार्ता सफल नहीं होती, तब तक हालात सुधरने की संभावना कम है।
आईएमए हरियाणा के पूर्व प्रधान डॉ. अजय महाजन ने बताया कि सोमवार देर शाम स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने संदेश भेजकर बैठक स्थगित होने की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस कदम से गरीब मरीजों की परेशानियाँ और बढ़ गई हैं। उनके अनुसार, रोज़ाना सैकड़ों मरीज इलाज के लिए अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन योजना बंद होने के कारण उन्हें निराश होकर लौटना पड़ रहा है।
डॉ. महाजन ने सरकार पर आरोप लगाया कि मरीजों की समस्याओं के प्रति गंभीरता की कमी साफ झलक रही है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार वास्तव में राहत देना चाहती है तो भुगतान तुरंत जारी किया जाना चाहिए और नई बैठक की तारीख जल्द घोषित की जानी चाहिए।
निजी अस्पतालों के संचालकों का कहना है कि लगातार बकाया भुगतान के कारण उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। दवाइयों, स्टाफ और अन्य आवश्यकताओं के लिए खर्च बढ़ चुका है। ऐसे में बिना भुगतान इलाज जारी रखना संभव नहीं है। यही कारण है कि मजबूरी में उन्हें योजना के तहत इलाज रोकना पड़ा।
दूसरी ओर, वित्त विभाग ने कहा है कि 291 करोड़ रुपये की राशि जल्द ही अस्पतालों तक पहुँचा दी जाएगी। अधिकारियों का मानना है कि अगले दो-तीन दिनों में भुगतान प्रक्रिया शुरू हो जाएगी, जिससे हालात में सुधार आने की उम्मीद है। लेकिन जब तक सरकार और आईएमए के बीच औपचारिक वार्ता नहीं होती, तब तक मरीजों को राहत मिलना मुश्किल होगा।
गौरतलब है कि आयुष्मान योजना गरीब तबके के लिए जीवनदायिनी साबित हुई है। लाखों मरीजों ने इस योजना के जरिए मुफ्त इलाज का लाभ उठाया है। लेकिन मौजूदा गतिरोध ने आम जनता की चिंता बढ़ा दी है। अस्पतालों के बाहर मरीज और उनके परिजन हताश होकर खड़े नजर आते हैं। कई गंभीर मरीजों को मजबूरी में निजी स्तर पर इलाज करवाना पड़ रहा है, जिससे उन पर भारी आर्थिक बोझ पड़ रहा है।
अब सबकी निगाहें सरकार और आईएमए की अगली बैठक पर टिकी हैं। यदि दोनों पक्ष जल्द ही समाधान निकालने में सफल नहीं हुए, तो गरीब मरीजों की तकलीफें और बढ़ सकती हैं।
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