बीजेपी ने उपराष्ट्रपति पद हेतु चुना राधाकृष्णन
तमिलनाडु की राजनीति का सम्मानित चेहरा बने उम्मीदवार…..
नई दिल्ली भारतीय जनता पार्टी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए एक अहम कदम उठाते हुए महाराष्ट्र के वर्तमान राज्यपाल और वरिष्ठ नेता सीपी राधाकृष्णन को एनडीए का उम्मीदवार घोषित किया है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने औपचारिक घोषणा की, वहीं जीतन राम मांझी ने भी सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी साझा की। इस फैसले के साथ ही राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है कि भाजपा ने आखिर क्यों राधाकृष्णन का नाम चुना और क्या इस निर्णय से विपक्षी खेमे में दरार आ सकती है।
सीपी राधाकृष्णन पिछले चार दशकों से राजनीति और सामाजिक जीवन में सक्रिय रहे हैं। उन्हें तमिलनाडु की राजनीति में एक सम्मानित और स्वच्छ छवि वाला नेता माना जाता है। उनका लंबा राजनीतिक अनुभव और दक्षिण भारत से उनका संबंध भाजपा के लिए रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह चुनावी समीकरणों में भी बड़ा संदेश देता है कि भाजपा अब दक्षिण भारत में अपने आधार को और मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राधाकृष्णन का चयन भाजपा की सोची-समझी रणनीति है। एक ओर वे संगठन के पुराने और समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी छवि एक ईमानदार और सुलझे हुए नेता की है। उन्हें चुनकर भाजपा विपक्षी गठबंधन में भी चुनौती पेश कर रही है क्योंकि दक्षिण भारत से किसी बड़े चेहरे को सामने लाना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा।
वहीं दूसरी तरफ विपक्षी खेमे में भी इस फैसले को लेकर हलचल तेज हो गई है। अब सवाल यह है कि क्या विपक्ष इस बार एकजुट रहकर उम्मीदवार उतार पाएगा या अंदरूनी मतभेदों के चलते कोई दरार उभर आएगी। विपक्षी पार्टियों में पहले से ही कई मुद्दों पर मतभेद हैं, ऐसे में राधाकृष्णन जैसे सम्मानित चेहरे के सामने एक मजबूत प्रत्याशी खड़ा करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
राधाकृष्णन का राजनीतिक सफर बेहद लंबा और विविधताओं से भरा हुआ है। वे तमिलनाडु में भाजपा के शुरुआती चेहरों में से रहे हैं और राज्य की राजनीति में उनका सम्मानजनक स्थान है। सामाजिक कार्यों में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही है, जिससे वे आम जनता के बीच लोकप्रिय बने। भाजपा का मानना है कि उनकी उम्मीदवारी राष्ट्रीय राजनीति में दक्षिण भारत की आवाज को और मजबूत करेगी।
यह फैसला भाजपा के लिए भविष्य की रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि उपराष्ट्रपति जैसे उच्च संवैधानिक पद पर दक्षिण भारत से एक सशक्त चेहरा लाकर भाजपा न केवल राष्ट्रीय संतुलन साधना चाहती है, बल्कि आने वाले चुनावों में भी इसका सकारात्मक असर देखना चाहती है।
अब निगाहें विपक्ष की रणनीति पर टिकी हैं कि वह इस चुनौती का सामना कैसे करेगा। क्या वह एकजुट रहकर मुकाबला करेगा या आंतरिक मतभेद उन्हें कमजोर कर देंगे? यह आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा।
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