कॉम्पिटिशन एग्जाम में अब कृपाण और पगड़ी मान्य
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कॉम्पिटिशन एग्जाम में अब कृपाण-पगड़ी मान्य

सरकार ने धार्मिक पहचान के सम्मान में बदले नियम, सिख अभ्यर्थियों को मिली बड़ी राहत…..

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जयपुर सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं में अब सिख समुदाय के कैंडिडेट्स कड़ा, कृपाण और पगड़ी जैसे धार्मिक प्रतीक पहनकर शामिल हो सकेंगे। यह फैसला सरकार द्वारा धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए लिया गया है। नए नियमों के तहत केंद्र और राज्य स्तर की सभी प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाओं में ऐसे धार्मिक प्रतीकों को अब वर्जित नहीं माना जाएगा, बशर्ते कि उम्मीदवार सुरक्षा जांच में सहयोग करें और निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करें।

सरकार ने यह कदम उन अभ्यर्थियों की शिकायतों के बाद उठाया है जिन्हें परीक्षा केंद्रों पर धार्मिक प्रतीकों के कारण परीक्षा में बैठने से रोका गया था। अब सरकार ने स्पष्ट आदेश जारी कर दिए हैं कि किसी भी धार्मिक प्रतीक को आधार बनाकर किसी उम्मीदवार को परीक्षा से वंचित नहीं किया जाएगा।

अधिकारियों का कहना है कि परीक्षा केंद्रों पर सुरक्षा के लिहाज से उम्मीदवारों की जांच की जाएगी, लेकिन धार्मिक पहचान का अपमान नहीं किया जाएगा। आदेश में यह भी कहा गया है कि परीक्षा केंद्र के स्टाफ को संवेदनशीलता के साथ प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि कोई भेदभाव या असुविधा की स्थिति उत्पन्न न हो।

सिख समुदाय लंबे समय से इस विषय को लेकर सरकार से अपील कर रहा था। उनका कहना था कि कृपाण और कड़ा जैसे धार्मिक चिन्ह उनकी आस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और इन्हें हटाना धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन है।

नई गाइडलाइंस से अब यह स्पष्ट हो गया है कि कोई भी उम्मीदवार अपनी धार्मिक पहचान के साथ परीक्षा में भाग ले सकता है। इससे उन लोगों को बड़ी राहत मिली है जो अब तक अपने धर्म और परीक्षा के बीच एक कठिन चुनाव करने को मजबूर थे।

वास्तविकता यह है कि भारत जैसे विविधता भरे देश में धार्मिक स्वतंत्रता और समान अवसर दोनों ही संविधान के मौलिक सिद्धांत हैं। ऐसे में सरकार द्वारा लिया गया यह कदम सामाजिक समावेशिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है। सिख अभ्यर्थियों ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह ना सिर्फ एक नीति बदलाव है बल्कि यह एक संवेदनशील और समावेशी प्रशासन की पहचान भी है। अब उन्हें परीक्षा केंद्रों पर शर्मिंदगी या बहस का सामना नहीं करना पड़ेगा।

परीक्षा आयोजकों को अब नए दिशानिर्देशों के अनुसार केंद्रों पर प्रशिक्षण देने के निर्देश भी दिए गए हैं ताकि भविष्य में किसी प्रकार की गलतफहमी या विवाद से बचा जा सके। इस फैसले ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि प्रशासन जब चाहे तो संवेदनशील मुद्दों को समझते हुए ऐसा संतुलन बना सकता है जिससे कानून, सुरक्षा और धार्मिक भावनाओं – तीनों का सम्मान बना रहे।

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