सरकारी स्कूलों की जर्जर छतें बनीं खतरा
पंजाब के लाखों बच्चों की जान पर बनी, सुरक्षा के इंतजाम सवालों में
पंजाब के सरकारी स्कूलों की हालत किसी दर्दनाक सच्चाई से कम नहीं है। एक तरफ शिक्षा का अधिकार हर बच्चे को सुरक्षित और बेहतर वातावरण देने की बात करता है, वहीं दूसरी तरफ पंजाब के स्कूलों की जर्जर छतें और टूटती दीवारें बच्चों के भविष्य पर ही नहीं, उनकी जान पर भी भारी पड़ रही हैं।
राज्य में कुल 19,262 सरकारी स्कूल हैं जिनमें लगभग 25 लाख बच्चे पढ़ रहे हैं। इनमें से 12,880 प्राइमरी, 2,670 मिडल, 1,740 हाई और 1,972 सीनियर सेकेंडरी स्कूल हैं। इन स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकतर विद्यार्थी गरीब और पिछड़े वर्ग से आते हैं। उनके लिए ये स्कूल ही एकमात्र आशा हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि कई स्कूलों की हालत इतनी खराब है कि वहां रहना ही खतरे से खाली नहीं।
स्कूलों की छतें टपक रही हैं, दीवारों में दरारें हैं, और कुछ कमरों की छत कभी भी गिर सकती है। बरसात के दिनों में हालात और भी भयावह हो जाते हैं। बच्चों को एक कोने में बैठा दिया जाता है, ताकि अगर कहीं से छत टूटे तो सीधे उन पर न गिरे। स्कूल प्रशासन भी बेबस है क्योंकि बजट और सरकारी सहायता समय पर नहीं मिलती। मोगा, फरीदकोट, बठिंडा, संगरूर जैसे जिलों में स्थिति और खराब है। कई स्कूलों में क्लासरूम की संख्या बहुत कम है, जिससे बच्चों को एक ही कमरे में पढ़ाया जाता है। इससे न सिर्फ पढ़ाई में बाधा आती है, बल्कि सुरक्षा का खतरा भी बढ़ता है।
अभिभावकों की चिंता भी जायज़ है। वे अपने बच्चों को पढ़ने तो भेजते हैं लेकिन हर दिन इस डर के साथ कि कहीं कोई हादसा न हो जाए। राज्य सरकार ने कई बार मरम्मत और रिनोवेशन के लिए योजनाएं शुरू कीं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनका असर न के बराबर दिखाई देता है। शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह स्कूलों की स्थिति की तुरंत जांच कराए और जिन स्कूलों की हालत बेहद खराब है, वहां बच्चों को अस्थायी रूप से सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करे। साथ ही, प्राथमिकता के आधार पर मरम्मत और पुनर्निर्माण के काम शुरू किए जाएं।
शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, यह ज़रूरी है कि हर बच्चे को सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल मिले। बच्चों की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता। जब तक स्कूलों की हालत सुधारी नहीं जाती, तब तक ‘शिक्षा का अधिकार’ केवल एक अधूरा सपना ही रहेगा।