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32 साल बाद फर्जी मुठभेड़ में मिला इंसाफ

सीबीआई कोर्ट ने 1993 के एनकाउंटर केस में पंजाब पुलिस के पूर्व SP-DSP समेत 5 अफसरों को दोषी ठहराया….

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पंजाब एक लंबे इंतजार के बाद आखिरकार 32 साल बाद न्याय की उम्मीदों को नई रोशनी मिली है। पंजाब के मोहाली स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने 1993 के चर्चित फर्जी मुठभेड़ मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने पंजाब पुलिस के तत्कालीन एसपी, डीएसपी सहित पांच वरिष्ठ अधिकारियों को दोषी ठहराया है। इन अधिकारियों पर आरोप था कि उन्होंने सात बेगुनाह लोगों को फर्जी मुठभेड़ में मौत के घाट उतार दिया था।

यह मामला पंजाब में उग्रवाद के उस दौर से जुड़ा है जब कानून व्यवस्था की स्थिति बेहद संवेदनशील थी। पुलिस द्वारा आतंकवाद के नाम पर कई बार निर्दोष लोगों को निशाना बनाए जाने के आरोप लगते रहे। 1993 में हुए इस फर्जी मुठभेड़ मामले में पीड़ित परिवारों ने लगातार इंसाफ की मांग की, लेकिन लंबी कानूनी प्रक्रिया और सिस्टम की जटिलता ने उनके संघर्ष को कठिन बना दिया।

हालांकि पीड़ित परिवारों ने हार नहीं मानी और 32 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब जाकर उन्हें इंसाफ मिला है। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पुलिस अधिकारियों ने अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए न केवल कानून का उल्लंघन किया, बल्कि सात निर्दोष लोगों की जान भी ली। यह मानवाधिकारों का सीधा हनन था।

सीबीआई कोर्ट ने सभी पांचों दोषी अधिकारियों को दोषी करार देते हुए उनकी सजा पर सोमवार को फैसला सुनाने की घोषणा की है। इस फैसले के बाद कोर्ट परिसर के बाहर पीड़ितों के परिजनों की आंखों में आंसू थे – कुछ दुख के, कुछ राहत के। किसी ने अपना बेटा खोया था, तो किसी ने भाई। लेकिन आज उन्हें यह संतोष है कि देर से ही सही, पर न्याय मिला।

इस फैसले को मानवाधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने भी सराहा है। उनका मानना है कि यह फैसला केवल एक केस का अंत नहीं, बल्कि उस मानसिकता पर चोट है जिसमें वर्दीधारी खुद को कानून से ऊपर समझते हैं। यह उन सभी पीड़ित परिवारों के लिए एक उम्मीद बनकर आया है जो आज भी ऐसे ही किसी अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। अब देश भर की निगाहें सोमवार को आने वाली सजा पर टिकी हैं। क्या यह सजा उन परिवारों के घावों पर मरहम रख पाएगी, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस फैसले ने कानून के राज में लोगों का भरोसा फिर से मजबूत किया है।

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