हरियाणा में स्कूली बच्चों का ड्रॉपआउट संकट गहराया
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हरियाणा में स्कूली बच्चों का बढ़ता ड्रॉपआउट संकट

गरीबी, संसाधनों की कमी और शिक्षकों के अभाव से टूट रही शिक्षा की नींव…..

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हरियाणा जैसे विकसित होते राज्य में शिक्षा की तस्वीर चिंता का विषय बनती जा रही है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में हर 100 स्कूली बच्चों में से 14 बच्चे अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ रहे हैं। ये आंकड़ा केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि राज्य के भविष्य के लिए एक चेतावनी है। शिक्षा का यह गिरता स्तर न केवल सामाजिक विकास को प्रभावित करता है, बल्कि बच्चों के जीवन के अवसरों को भी सीमित कर रहा है।

ड्रॉपआउट की सबसे बड़ी वजह गरीबी मानी जा रही है। कई परिवार अब भी इस स्थिति में नहीं हैं कि वे अपने बच्चों को नियमित स्कूल भेज सकें। कई बार बच्चों को छोटे-मोटे कामों में लगा दिया जाता है ताकि घर चलाने में कुछ मदद मिल सके। ऐसे में पढ़ाई उनकी प्राथमिकता से हट जाती है।

दूसरी समस्या स्कूलों में बुनियादी ढांचे की है। ग्रामीण इलाकों में अनेक स्कूल ऐसे हैं जहां पीने के पानी, शौचालय और बैठने की व्यवस्था तक पर्याप्त नहीं है। कई स्कूलों में भवन की हालत जर्जर है और बच्चे असुविधाजनक माहौल में पढ़ाई के लिए मजबूर हैं।

एक और अहम वजह शिक्षकों की कमी है। अनेक स्कूलों में विषय विशेषज्ञ शिक्षकों का अभाव है। कई स्कूलों में एक ही शिक्षक को कई विषय पढ़ाने पड़ते हैं जिससे पढ़ाई का स्तर प्रभावित होता है। छात्रों को पढ़ाई में रुचि न आना, मार्गदर्शन की कमी और मोटिवेशन की अनुपस्थिति भी ड्रॉपआउट बढ़ाने वाले कारकों में शामिल हैं।

हिसार जिले के बरवाला क्षेत्र में गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल से रिटायर्ड लेक्चरर चमन लाल कौशिक का कहना है कि ड्रॉपआउट की एक अहम वजह दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासी परिवार भी हैं। ये परिवार अक्सर काम की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, जिससे बच्चों की शिक्षा बाधित होती है। कई बार वे बच्चे एक स्कूल में दाखिला तो लेते हैं लेकिन साल पूरा होने से पहले ही दूसरे राज्य चले जाते हैं।

राज्य सरकार ने ड्रॉपआउट दर को कम करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे मुफ्त किताबें, पोषण आहार और छात्रवृत्तियां, लेकिन जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का प्रभाव उतना नहीं दिख रहा है जितना अपेक्षित था।

समाजशास्त्रियों का मानना है कि शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए सरकार को केवल योजनाएं बनाना नहीं बल्कि उनके क्रियान्वयन की भी कड़ी निगरानी करनी चाहिए। साथ ही, हर गांव और हर स्कूल की जरूरत के अनुसार अलग रणनीति अपनानी होगी।

हरियाणा में बढ़ती ड्रॉपआउट दर न केवल एक शिक्षा संबंधी संकट है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक असमानता को भी उजागर करता है। यदि समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।

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