News around you

स्वास्थ्य बीमा की मनमानी शर्तों पर अंकुश लगाया जाए

हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, *डॉ नरेश पुरोहित, (कार्यकारी सदस्य, अखिल भारतीय अस्पताल प्रशासक संघ) का स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के रवैए पर विश्लेषण

176

नई दिल्ली : बीमा शब्द वैसे तो सुरक्षा का बोध कराता है। ऐसा शब्द जिससे हमें सेहत से लेकर भविष्य सुरक्षित रखने तक की बातें जेहन में आती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि बीमा की सुरक्षा एक हद तक लोगों को कई संकटों में राहत देने का काम करती है। खासतौर से सेहत के मामले में यदि  बीमा शब्द वैसे तो सुरक्षा का बोध कराता है। ऐसा शब्द जिससे हमें सेहत से लेकर भविष्य सुरक्षित रखने तक की बातें जेहन में आती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि बीमा की सुरक्षा एक हद तक लोगों को कई संकटों में राहत देने का काम करती है। खासतौर से सेहत के मामले में यदि स्वास्थ्य बीमा कराया हुआ हो। सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की अपनी सीमाएं हैं इसीलिए लोग स्वास्थ्य को लेकर अतिरिक्त सुरक्षा कवच दूसरे बीमा के रूप में भी लेना पसंद करने लगे हैं। लेकिन यही सुरक्षा कवच जब बीमा नियमों की जटिलताओं में उलझता दिखे तो बीमा कराने वाला खुद को ठगा सा महसूस करता है। ऐसा नहीं कि स्वास्थ्य बीमा करने वाली सभी बीमा कंपनियों का आचरण एक जैसा होता हो लेकिन जिस तरह के मामले आए दिन सामने आते हैं उससे लगता है कि स्वास्थ्य बीमा कराने वाले को अब वकील या चार्टर्ड अकाउंटेंट का सहारा लेना चाहिए!
छत्तीसगढ़ में रायपुर के एक ताजा मामले ने सबका ध्यान खींचा है। बीमा कंपनी ने एक उपभोक्ता का स्वास्थ्य बीमा क्लेम यह कहकर रोक दिया कि कोविड के समय उसे अस्पताल में दाखिल होने की जरूरत नहीं थी। वह होम क्वारंटाइन होकर ही इलाज करा सकता था। जबकि बीमित व्यक्ति के बीमा में कोविड कवर भी था। उपभोक्ता फोरम में पहुुंचने पर अब मरीज को राहत मिली है। सब जानते हैं कि कोविड का दौर आपातकालीन था। यदि शासन व डॉक्टर ने ही मरीज को होम क्वारंटाइन की अनुमति नहीं दी हो तो उपभोक्ता भला स्वयं कैसे फैसला कर सकता है? चिंता इसी बात की है कि बीमा कंपनियां बेवजह मरीजों का क्लेम अटकाने में जुट जाती हैं। बीमा कराने के पहले कंपनियां यह ताकीद जरूर करती है कि सभी दस्तावेजों को पहले ध्यान से पढ़ें। दस्तावेजों की संख्या और उसकी इबारत आम आदमी के तो शायद ही समझ में आए। यह ऐसी होती है कि आम उपभोक्ता समझ ही नहीं सकता।
बहुत से मामलों में देखने में आया है कि कंपनियां अजीब-अजीब शर्तों में उलझाकर क्लेम या तो रोक देती है या फिर क्लेम सेटलमेंट करते वक्त कई मदों का बोझ बीमित की जेब पर डाल देती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हैरान-परेशान लोग बीमा कंपनियों की मनमानी के खिलाफ बीमा लोकपाल, बीमा नियामक, उपभोक्ता फोरम और कोर्ट के ही चक्कर काटने को मजबूर होते रहेेंगे?

जब दुनिया भर में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं पर बहस छिड़ी है, सरकारें विभिन्न कल्याण योजनाएं चला रही हैं। ऐसे में बीमा कंपनियों की मनमानी रोकने के लिए भी सरकारी स्तर पर ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।


*डॉ नरेश पुरोहित- एमडी, डीएनबी , डीआई एच , एमएचए, एमआरसीपी (यूके) एक महामारी रोग विशेषज्ञ हैं। वे भारत के राष्ट्रीय संक्रामक रोग नियंत्रण कार्यक्रम के सलाहकार हैं। मध्य प्रदेश एवं दूसरे प्रदेशों की सरकारी संस्थाओं में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम , राष्ट्रीय पर्यावरण एवं वायु प्रदूषण के संस्थान के सलाहकार हैं। एसोसिएशन ऑफ किडनी केयर स्ट्डीज एवं हॉस्पिटल प्रबंधन एसोसिएशन के भी सलाहकार हैं।


Discover more from News On Radar India

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

You might also like

Comments are closed.