साध्वी प्रज्ञा पर गवाह बनाने की साजिश का आरोप
News around you

साध्वी प्रज्ञा पर गवाह बनाने की साजिश

मालेगांव केस में पूर्व एटीएस अधिकारियों पर फर्जी गवाही दिलवाने और धमकाने के आरोप….

3

मालेगांव बम धमाकों के मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। मामले में अब सामने आ रहा है कि जांच एजेंसियों द्वारा न केवल साक्ष्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, बल्कि फर्जी गवाह तैयार करने के लिए भी प्रयास किए गए। ताजा जानकारी के अनुसार, इंदौर के एक मैकेनिक जितेंद्र शर्मा को जबरन धमकाकर साध्वी प्रज्ञा का नाम लेने के लिए मजबूर किया गया था।

जितेंद्र शर्मा ने आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र एटीएस की टीम ने उस पर दबाव बनाते हुए धमाकों में साध्वी प्रज्ञा की भूमिका को स्वीकार करने के लिए कहा। इसके लिए उसे पहले लालच दिया गया—नौकरी, पैसे और सुरक्षा का झांसा दिया गया—और जब उसने बात नहीं मानी, तो उसे धमकाया जाने लगा। एटीएस के अधिकारियों ने उसे धमकाया कि अगर वह सहयोग नहीं करेगा, तो उसे भी आरोपी बना दिया जाएगा।

जितेंद्र का कहना है कि उस पर झूठा आरोप लगाया गया कि वह बम विस्फोट की साजिश में शामिल था और उसकी दुकान का उपयोग धमाके की तैयारी के लिए किया गया था। लेकिन उसके पास अपनी बेगुनाही के पर्याप्त सबूत थे। बावजूद इसके, उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। यह सब इसलिए ताकि वह कोर्ट में जाकर यह बयान दे सके कि साध्वी प्रज्ञा इस साजिश में शामिल थीं।

साध्वी प्रज्ञा, जो अब भोपाल से सांसद हैं, पहले ही इन आरोपों को साजिश करार दे चुकी हैं। कोर्ट ने उन्हें और अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया था। अब जबकि इस तरह के खुलासे सामने आ रहे हैं, यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या देश की जांच एजेंसियों में राजनीतिक या वैचारिक प्रभाव के चलते ऐसे गंभीर आरोप लगाए जाते हैं?

यह मामला न केवल एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा और स्वतंत्रता से जुड़ा है, बल्कि देश की न्याय प्रणाली और जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करता है। अगर कोई एजेंसी किसी निर्दोष को फंसाने के लिए इस हद तक जा सकती है, तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरे का संकेत है।

पूर्व जांच अधिकारियों की भूमिका अब संदेह के घेरे में आ चुकी है। कई कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने इसकी उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि अगर कोई अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करता है और सच्चाई को दबाने की कोशिश करता है, तो उसे भी सजा मिलनी चाहिए।

इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल मालेगांव धमाकों की जांच को कटघरे में खड़ा किया है, बल्कि गवाहों की सुरक्षा और निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस मामले में किसी अधिकारी पर कार्रवाई होती है या यह भी सिर्फ एक और राजनीतिक विवाद बनकर रह जाएगा।

Leave A Reply

Your email address will not be published.