भारत-चीन-रूस की तिकड़ी: बदलता वर्ल्ड ऑर्डर
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भारत-चीन-रूस की तिकड़ी बदल रही वर्ल्ड ऑर्डर

ट्रंप की टैरिफ नीति के पीछे छिपा है अमेरिकी वर्चस्व खोने का डर…..

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नई दिल्ली दुनिया में शक्ति संतुलन अब पुराने ढर्रे पर नहीं चल रहा है। अमेरिका, जो दशकों से खुद को वैश्विक शक्ति का केंद्र मानता रहा है, अब नए उभरते गठबंधनों से घबराया हुआ दिखाई दे रहा है। भारत, चीन और रूस जैसे देश जब एक मंच पर आकर वैश्विक मुद्दों पर आवाज बुलंद करने लगे हैं, तो वॉशिंगटन की नींद उड़ना स्वाभाविक है। इसी डर का परिणाम है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार टैरिफ जैसे आर्थिक हथियारों का सहारा ले रहे हैं।

हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने भारत, चीन और कई अन्य देशों पर नए टैरिफ लगाए हैं। यह कदम केवल व्यापार घाटा कम करने या अमेरिकी उद्योगों को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरी भू-राजनीतिक रणनीति छिपी है। अमेरिका इस बात से चिंतित है कि यदि एशिया की बड़ी ताकतें—जैसे भारत और चीन—रूस के साथ मिलकर वैकल्पिक वैश्विक संस्थाएं, भुगतान तंत्र और व्यापारिक समझौते खड़े करने लगें, तो अमेरिका की दशकों पुरानी पकड़ ढीली पड़ सकती है।

भारत और चीन दोनों की अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत हो रही है। रूस पहले ही पश्चिम से अलग रास्ता अपना चुका है और वह एशियाई देशों के साथ मिलकर अपनी रणनीति बना रहा है। ब्रिक्स जैसे समूहों में इन तीनों देशों की भागीदारी और बढ़ती सहमति अमेरिका के लिए खतरे की घंटी है। डॉलर पर निर्भरता को घटाने की मुहिम, नई अंतरराष्ट्रीय मुद्रा की चर्चा और पश्चिमी संस्थाओं की आलोचना ने अमेरिका की चिंता को और बढ़ा दिया है।

डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति कार्यकाल हमेशा से “अमेरिका फर्स्ट” नीति पर आधारित रहा है। वे हर उस साझेदारी या संगठन से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं जो अमेरिका की सर्वोच्चता को चुनौती देता हो या उसकी शर्तों पर न चलता हो। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। भारत अपनी विदेश नीति को पहले से कहीं अधिक स्वतंत्र बना रहा है। चीन पहले से ही अमेरिका के सामने सीधा प्रतिद्वंदी बन चुका है और रूस अपनी सैन्य और रणनीतिक स्थिति के बल पर अपना प्रभाव कायम रखे हुए है।

अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि इन देशों की एकजुटता कहीं वैश्विक वित्तीय और संस्थागत ढांचे को ही न बदल दे। यदि दुनिया अमेरिकी डॉलर, आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक और नाटो जैसे अमेरिकी प्रभाव वाले ढांचों से हटकर नए विकल्पों की ओर बढ़ने लगी, तो वाशिंगटन की धमक वैसी नहीं रह जाएगी जैसी आज है।

डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ थोपने का निर्णय सिर्फ एक आर्थिक नीति नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संरचना को बनाए रखने की अंतिम कोशिश है। आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत, चीन और रूस सच में एक नया वर्ल्ड ऑर्डर बनाने में सफल हो पाते हैं, या अमेरिका फिर से कोई नई चाल चलते हुए खुद को शीर्ष पर बनाए रखता है।

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