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प्रतिबंधित एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग होता है जानलेवा

हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ *डॉ नरेश पुरोहित (कार्यकारी सदस्य – अखिल भारतीय अस्पताल प्रशासक संघ) द्वारा प्रतिबंधित एंटी-बायोटिक्स दवाओं के अंधाधुंध प्रयोग पर चिकित्सा उद्योग एवं रोगियों को सचेत करता लेख

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नई दिल्ली/ भोपाल: देश में ऐसी-ऐसी एंटीबायोटिक दवाएं बेची जा रही हैं, जो या तो अस्वीकृत हैं या प्रतिबंधित। निश्चय ही यह एक बड़ा गोरखधंधा है, जिस पर ज्यादा नजर नहीं गई है। कुछ ही समय पहले ‘जर्नल आफ फार्मास्युटिकल पालिसी एंड प्रैक्टिस’ में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 2020 तक भारतीय दवा बाजार में सत्तर फीसद से ज्यादा ‘फिक्स्ड-डोज एंटीबायोटिक फार्मूलेशन’ या तो प्रतिबंधित थे या उन्हें बेचने की मंजूरी नहीं दी गई थी।

‘फिक्स्ड-डोज कांबिनेशन’ की हिस्सेदारी 16 फीसदी है । इस अध्ययन से पता चलता है कि ‘फिक्स्ड-डोज कांबिनेशन’ (एफडीसी) एंटीबायोटिक बिक्री में इन दवाओं की हिस्सेदारी करीब सोलह (15.9) फीसद है। ये दवाएं बाजार में क्यों बिक रही हैं, इसके जवाब में अध्ययन कहता है कि इन नामंजूर दवाओं को बाजार से हटाने की सरकारी पहलकदमियां बेअसर रही हैं। . प्रतिबंधित (एफडीसी) एंटीबायोटिक दवाओं का बाजार में बिकना इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि वर्ष 2008 में इनकी बिक्री करीब तैंतीस फीसद थी, जो 2020 में बढ़कर सवा सैंतीस फीसद हो गई। आंकड़े बताते हैं कि बाजार में वैसे तो एंटीबायोटिक एफडीसी फार्मूलेशन की कुल संख्या 2008 के 574 से 2020 में गिरकर 395 रह गई, लेकिन इनमें से 70.4 फीसद यानी 395 में से 278 अस्वीकृत या प्रतिबंधित पाए गए।

ऐसी दवाओं से संक्रमणों का इलाज कठिन हो जाता है : समस्या का दूसरा बड़ा पहलू यह भी है कि हमारे देश में रोगाणुरोधी प्रतिरोध तेजी से बढ़ रहा है। इसका मतलब है कि दवाएं बीमारियों के खिलाफ अपनी ताकत खो चुकी हैं। ऐसा प्राय: तब होता है, जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी समय के साथ अपना स्वरूप बदल या एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ ताकत विकसित कर लेते हैं। ऐसे में दवाओं का असर नहीं होता और संक्रमणों का इलाज कठिन हो जाता है। कोरोना विषाणु के प्रसार से पहले ही दुनिया इस पर चिंतित रही है कि कहीं रोगाणुरोधी प्रतिरोध रूपी एक मूक महामारी दुनिया भर के सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा न बन जाए। चूंकि इंसानों के अलावा पशुओं-मवेशियों, मत्स्य पालन और फसलों तक में एंटीबायोटिक का बेइंतहा इस्तेमाल और दुरुपयोग बढ़ रहा है, इसलिए एंटीबायोटिक अप्रभावी होते जा रहे हैं। अस्पतालों, खेतों और कारखानों में एंटीबायोटिक्स का बेजा इस्तेमाल और गलत तरीके से अपशिष्ट प्रबंधन समस्या को और बढ़ा रहा है। अब वक्त आ गया है कि हमें एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग करने से पहले इस पर विचार करना चाहिए कि कहीं उन्हें बिना जरूरत तो नहीं लिया जा रहा है।

यह सही है कि दुनिया में एक दौर ऐसा भी था, जब सामान्य से आपरेशन के बाद होने वाला कोई संक्रमण जानलेवा साबित होता था। यह एंटीबायोटिक दवाओं के आविष्कार से पहले की बात है। बीती करीब एक सदी में एंटीबायोटिक दवाओं ने संक्रामक बीमारियों के खिलाफ मजबूत ढाल का काम किया है, लेकिन अब उनकी ताकत कमजोर पड़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) कई बार चेतावनी जारी चुका है कि एंटीबायोटिक्स के अंधाधुंध इस्तेमाल से बैक्टीरिया इतने ताकतवर होते जा रहे हैं कि ये दवाएं उन पर असर नहीं कर रही हैं। चूंकि अभी इन दवाओं का कोई

 विकल्प मौजूद नहीं है, इसलिए यह समस्या वैश्विक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन गई है। हालांकि अब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास बीमारियों के इलाज के लिए एंटीबायोटिक के अलावा भी कई हल मौजूद हैं। पर डाक्टर एंटीबायोटिक्स पर हद से ज्यादा भरोसा करने लगे हैं। ब्रिटेन की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के वर्ष 2015 के एक शोध के मुताबिक 2001 से 2010 के बीच भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग में 62 फीसद का इजाफा हो गया था। इसके अगले दशक में भी यह रुझान जारी रहा। यह दुनिया में सबसे ऊंची दर है। भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ते जाने का एक संकेत यह है कि पर्याप्त जांच-परख के बिना इन्हें दिया जा रहा है।

इन दवाओं का उपयोग इस तेजी से बढ़ा है कि अब ज्यादातर रोगाणुओं में आम प्रचलित एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है। इस कारण ‘सुपरबग’ जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं। इन जानकारियों के बावजूद हमारे देश में वायरल बुखार, डेंगू और चिकनगुनिया के सैकड़ों-हजारों मामले सामने आने पर डाक्टर और मरीज, दोनों एंटीबायोटिक दवाओं का जमकर इस्तेमाल करते हैं। यह जानने की कोशिश तक नहीं की जाती कि क्या मरीज को उस एंटीबायोटिक दवा की जरूर…


*डॉ नरेश पुरोहित- एमडी, डीएनबी , डीआई एच , एमएचए, एमआरसीपी (यूके) एक महामारी रोग विशेषज्ञ हैं। वे भारत के राष्ट्रीय संक्रामक रोग नियंत्रण कार्यक्रम के सलाहकार हैं। मध्य प्रदेश एवं दूसरे प्रदेशों की सरकारी संस्थाओं में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम , राष्ट्रीय पर्यावरण एवं वायु प्रदूषण के संस्थान के सलाहकार हैं। एसोसिएशन ऑफ किडनी केयर स्ट्डीज एवं हॉस्पिटल प्रबंधन एसोसिएशन के भी सलाहकार हैं।

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