पुरानी गाड़ियों में सफर कर रहे मंत्री
4 साल पुरानी फॉर्च्यूनर से चल रहे नेता, नई 40 गाड़ियों को मंजूरी का इंतजार
जयपुर राजस्थान की राजनीति में एक अनोखा दृश्य देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर कई मंत्री आज भी 4 साल पुरानी सरकारी गाड़ियों में सफर कर रहे हैं। यह वही फॉर्च्यूनर गाड़ियाँ हैं जो 2019 में 31 लाख रुपये की कीमत पर खरीदी गई थीं। आज उनकी स्थिति यह है कि वे पुरानी हो चुकी हैं, लेकिन फिर भी मंत्रियों का काफिला इन्हीं गाड़ियों पर निर्भर है। अब राज्य सरकार ने करीब 40 नई फॉर्च्यूनर गाड़ियों की खरीद को मंजूरी देने की तैयारी कर ली है, लेकिन अंतिम निर्णय का इंतजार किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री और मंत्रियों की सुरक्षा, दौरे और अन्य गतिविधियों के लिए इन गाड़ियों की अहम भूमिका होती है। लेकिन इनकी हालत अब वैसी नहीं रही। कई गाड़ियों के मेंटेनेंस पर भारी खर्च आ रहा है। ड्राइवरों और सुरक्षा कर्मियों का कहना है कि लंबे सफर में अब ये गाड़ियाँ उतनी आरामदायक और भरोसेमंद नहीं रह गई हैं। कुछ गाड़ियों की माइलेज घट गई है, तो कुछ में बार-बार तकनीकी खराबी की शिकायतें सामने आ रही हैं।
राज्य में मौजूदा समय में फॉर्च्यूनर का उपयोग मुख्यमंत्री कार्यालय, गृह विभाग, लोक निर्माण विभाग, राजस्व विभाग सहित कई महत्वपूर्ण विभागों में किया जा रहा है। इन गाड़ियों को उच्च सुरक्षा श्रेणी में रखा गया है क्योंकि इनका उपयोग संवेदनशील दौरों और वीआईपी मूवमेंट में किया जाता है। हालांकि, गाड़ियों की उम्र और खराब होती स्थिति को देखते हुए अधिकारियों ने नई गाड़ियों की मांग की थी। इसके तहत 40 नई टोयोटा फॉर्च्यूनर गाड़ियों की फाइल सरकार के पास लंबित है और इसे जल्द ही मंजूरी मिलने की उम्मीद है।
आम जनता के बीच इस मुद्दे को लेकर दो तरह की प्रतिक्रियाएँ देखी जा रही हैं। एक तरफ लोग कह रहे हैं कि जब आम आदमी 10-15 साल पुरानी गाड़ी चलाता है, तो मंत्री सिर्फ 4 साल बाद नई गाड़ी क्यों चाहते हैं। दूसरी ओर कुछ का मानना है कि जिन परिस्थितियों और जिम्मेदारियों में मुख्यमंत्री और मंत्री यात्रा करते हैं, उनके लिए तकनीकी रूप से सक्षम और सुरक्षित वाहन जरूरी हैं।
गाड़ियों की खरीद का मसला केवल सुविधा से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक जरूरतों और सरकारी तंत्र की प्रभावशीलता से भी जुड़ा है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस प्रस्ताव को कब मंजूरी देती है और क्या कोई नई नीति सामने आती है जिसमें गाड़ियों की उपयोग अवधि को लेकर कोई नियम तय किया जाएगा।
इस मामले ने एक बार फिर सरकारी खर्च, जरूरत और जनता की अपेक्षाओं के बीच संतुलन पर चर्चा छेड़ दी है। पुराने वाहनों में सफर कर रहे नेता जहाँ एक ओर सादगी का संदेश दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नई गाड़ियों की मंजूरी का इंतजार यह दिखा रहा है कि व्यवस्थाएं कब तक टिकाऊ हो सकती हैं।
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