पंजाब सरकार ने लैंड पूलिंग पॉलिसी वापस ली
हाईकोर्ट की चेतावनी और किसानों की नाराजगी के बाद फैसला…..
पंजाब सरकार ने विवादित लैंड पूलिंग पॉलिसी को वापस लेने का फैसला किया है। यह कदम पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी और किसानों की लगातार नाराजगी के बाद उठाया गया। हाल ही में हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर पॉलिसी में सुधार नहीं किया गया तो अदालत इसे रद्द कर देगी।
लैंड पूलिंग पॉलिसी का उद्देश्य राज्य में विकास परियोजनाओं के लिए किसानों की जमीन को एकत्रित कर उनका संयुक्त रूप से विकास करना था। इसके तहत किसानों को जमीन का कुछ हिस्सा विकसित प्लॉट और बाकी का मुआवजा देने का प्रावधान था। हालांकि, कई किसानों का कहना था कि यह पॉलिसी उनके हितों के खिलाफ है और उनकी जमीन पर पूरा नियंत्रण उन्हें वापस नहीं मिल पाएगा।
वित्त मंत्री ने मीडिया से बातचीत में कहा कि किसानों के बड़े वर्ग ने इस पॉलिसी को नापसंद किया और उनकी आपत्तियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार किसानों के हितों के साथ समझौता नहीं करेगी। अगर पॉलिसी किसानों को स्वीकार नहीं है, तो हम इसे लागू नहीं करेंगे।”
किसानों का विरोध मुख्य रूप से इस बात को लेकर था कि लैंड पूलिंग में उन्हें विकसित जमीन तो मिलेगी, लेकिन उसकी उपयोगिता और बाजार मूल्य उनकी उम्मीद के मुताबिक नहीं होगा। साथ ही, उन्हें डर था कि सरकार विकास के नाम पर उनकी जमीन का एक बड़ा हिस्सा अपने नियंत्रण में ले लेगी।
हाईकोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान कहा था कि सरकार को पॉलिसी बनाते समय किसानों के हितों को सर्वोपरि रखना चाहिए और किसी भी विकास योजना में उनकी सहमति अनिवार्य होनी चाहिए। अदालत ने साफ किया था कि यदि किसानों की सहमति और हित सुरक्षित नहीं हुए तो पॉलिसी को रद्द कर दिया जाएगा।
विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि सरकार ने बिना पर्याप्त परामर्श के यह पॉलिसी लागू करने की कोशिश की, जो किसानों के साथ नाइंसाफी थी। पॉलिसी वापस लेने के फैसले को विपक्ष ने किसानों की जीत बताया।
अब सरकार ने संकेत दिया है कि भविष्य में अगर नई पॉलिसी लाई जाएगी तो उसमें किसानों की राय और सहमति को प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही, जमीन से जुड़े किसी भी प्रावधान में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त कदम उठाए जाएंगे।
इस फैसले से राज्यभर में किसानों में राहत की भावना है। किसान संगठनों ने सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि यह उनकी एकजुटता और संघर्ष का नतीजा है। हालांकि, उन्होंने चेतावनी भी दी है कि यदि भविष्य में बिना उनकी सहमति के कोई नई योजना लाई गई तो विरोध और तेज होगा।