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चंबा का मिंजर मेला: संस्कृति और परंपरा की एक धरोहर

हिमाचल के सांस्कृतिक शहर चंबा के ऐतिहासिक मिंजर मेले पर अपने अनुभव साझा करते हुए पी आर गुरु सुरेश गौड़*

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चंबा: हिमाचल प्रदेश का एक छोटा सा शहर, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का मिंजर मेला एक ऐसा आयोजन है जो हर साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह मेला चंबा की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लोगों को एक साथ लाने और उनकी एकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। (मिंजर मेले में शामिल होने पधारे प्रदेश के राज्यपाल  शिव प्रताप शुक्ला जी)

मिंजर मेले का इतिहास: मिंजर मेला हिमाचल प्रदेश की चंबा घाटी में 935 ईस्वी में चंबा के राजा की त्रिगर्त (कांगड़ा) के शासक पर विजय की स्मृति में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अपने विजयी राजा की वापसी पर, लोगों ने उन्हें धान और मक्के के गुलदस्ते भेंट किए, जो समृद्धि और खुशी का प्रतीक थे।

इस मेले में राजा साहिल वर्मन ने अपने राज्य के लोगों को अपने खेतों में मक्का की फसल काटने के बाद अपनी खुशहाली का जश्न मनाने के लिए आमंत्रित किया। मेले में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जैसे कि नृत्य, संगीत, और नाटक। लोगों ने अपने हस्तनिर्मित उत्पादों को प्रदर्शित किया और स्थानीय व्यंजनों का आनंद लिया।मेले के दौरान, राजा साहिल वर्मन ने अपने राज्य के लोगों को एक विशेष उपहार देने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने राज्य के लोगों को मिंजर, यानी एक विशेष प्रकार का धागा, दिया, जो उनकी खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक था।

मिंजर मेले का महत्व: मिंजर मेला चंबा के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन है, जो उनकी संस्कृति और परंपरा को प्रदर्शित करने का एक अवसर प्रदान करता है। मेले के दौरान, लोग अपने खेतों में मक्का की फसल काटने के बाद अपनी खुशहाली का जश्न मनाते हैं और मिंजर धागे को अपने घरों में रखते हैं। यह मेला चंबा की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करने का एक अवसर प्रदान करता है, और यह एक ऐसा आयोजन है जो हर साल बड़ी धूमधाम से जुलाई या अगस्त में आयोजित किया जाता है, जब चंबा के लोग अपने खेतों में मक्का की फसल काटने के बाद अपनी खुशहाली का जश्न मनाते हैं।

मिंजर मेले की विशेषताएं : मिंजर मेले में कई विशेषताएं हैं जो इसे एक अद्वितीय आयोजन बनाती हैं:
1. सांस्कृतिक कार्यक्रम: मेले में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जैसे कि नृत्य, संगीत, और नाटक। ये कार्यक्रम चंबा की संस्कृति और परंपरा को प्रदर्शित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
2. स्थानीय हस्तशिल्प: मेले में स्थानीय हस्तशिल्प की प्रदर्शनी भी आयोजित की जाती है, जिसमें चंबा के कारीगर अपने हस्तनिर्मित उत्पादों को प्रदर्शित करते हैं।
3. भोजन: मेले में विभिन्न प्रकार के स्थानीय व्यंजन परोसे जाते हैं, जो चंबा की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

मिंजर चंबा का सबसे लोकप्रिय मेला है जिसमें देश भर से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। यह मेला श्रावण मास के दूसरे रविवार को आयोजित होता है। मेले की शुरुआत मिंजर बाँटकर की जाती है, जो एक रेशमी लटकन होती है जिसे पुरुष और महिलाएँ समान रूप से अपने वस्त्रों के कुछ हिस्सों पर पहनते हैं। यह लटकन धान और मक्के की कलियों का प्रतीक है, जो वर्ष के इस समय में दिखाई देती हैं। सप्ताह भर चलने वाला यह मेला ऐतिहासिक चौगान में  मिंजर ध्वज फहराने के साथ शुरू होता है। चंबा शहर रंग-बिरंगा हो जाता है और हर कोई सुंदर परिधानों में आता है। खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

इस मेले की एक लोक कथा भी है जो कि चंबा के राजा साहिल वर्मन के समय से जुड़ी हुई है, जो एक धार्मिक और न्यायप्रिय राजा थे। कहा जाता है कि चंबा के राजा साहिल वर्मन ने कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध में अद्वितीय वीरता का परिचय दिया था। जब वह युद्ध में विजय प्राप्त कर अपने राज्य लौटे, तो भटियात की जनता ने उनका स्वागत मक्की और धान की बालियों से किया। इन बालियों को ही स्थानीय बोली में मिंजर या मंजरियां कहा जाता है। यह स्वागत एक विजय उत्सव के रूप में मनाया गया। तदुपरांत राजा साहिल वर्मन ने अपने राज्य की खुशहाली और समृद्धि के लिए एक बड़ा आयोजन करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने राज्य के लोगों को एक साथ लाने और उनकी एकता को बढ़ावा देने के लिए एक मेले का आयोजन करने का फैसला किया। जिसे बाद में मिंजर मेला के नाम से जाना जाने लगा।

चंबा के स्थानीय लोग मक्की और धान की बालियों को मिंजर कहते हैं। रघुवीर जी और लक्ष्मीनारायण भगवान को धान और मक्की से बना मिंजर या मंजरी और लाल कपड़े पर गोटा जड़े मिंजर के साथ, एक रुपया, नारियल और ऋतुफल भेंट किए जाते हैं। इस मिंजर को एक सप्ताह बाद रावी नदी में प्रवाहित किया जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग रेशम के धागे और मोतियों से मिंजर तैयार करते हैं, जिसे सर्वप्रथम लक्ष्मीनारायण मंदिर और रघुनाथ मंदिर में चढ़ाया जाता है। ऐतिहासिक मिंजर मेला हिंदू- मुस्लिम एकता व भाईचारे का प्रतीक भी है। चंबा का मुस्लिम मिर्जा परिवार मिंजर बनाता है और भगवान रघुवीर जी को अर्पित भी करता है।

आज भी  चंबा के लोग मिंजर मेले को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। वे अपने खेतों में मक्का की फसल काटने के बाद अपनी खुशहाली का जश्न मनाते हैं और मिंजर धागे को अपने घरों में रखते हैं। यह मेला चंबा की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लोगों को एक साथ लाने और उनकी एकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  (फोटो मुख्य संवाददाता  स्वर्ण दीपक रैना के सौजन्य से)


*डॉ. सुरेश गौड़, देश और दुनियां के जाने माने पी. आर. गुरु, ब्लॉगर, पी आर अल्केमिस्ट, लेखक, कवि और कहानीकार हैं।  उन्होंने विश्व में पीआर पर अधिकतम ब्लॉग्स लिख कर ऑफिशियल वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी अपना नाम दर्ज कराया है।

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