घरेलू हिंसा मामलों में प्रमाण मानक न कठोर
हाईकोर्ट ने कहा- चारदीवारी के भीतर अपराध सिद्ध करना मुश्किल…..
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा मामलों को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में प्रमाण का मानक अत्यधिक कठोर नहीं होना चाहिए। घरेलू हिंसा अक्सर घर की चारदीवारी के भीतर घटित होती है और पीड़िता के लिए सबूत जुटाना बेहद कठिन होता है। यदि अदालतें कठोर प्रमाण की मांग करेंगी, तो पीड़िताओं को न्याय पाना लगभग असंभव हो जाएगा।
यह फैसला उस मामले में आया जहां पत्नी ने अपने पति पर संवाद की कमी और बच्चों के पालन-पोषण में उदासीनता का आरोप लगाया था। कोर्ट ने माना कि पति घर पर रहते हुए भी पत्नी से बात नहीं करता था और बच्चों के जीवन में रुचि नहीं लेता था। हाईकोर्ट ने कहा कि पारिवारिक विवादों का सबसे अधिक बोझ बच्चों पर पड़ता है और अदालतों को इन मामलों में संवेदनशील रुख अपनाना चाहिए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पारिवारिक विवादों और घरेलू हिंसा मामलों का निपटारा तकनीकी दृष्टिकोण से हटकर होना चाहिए। केवल कानून की कठोर व्याख्या से न्याय नहीं हो सकता। ऐसे मामलों में न्यायालयों का कर्तव्य है कि वे परिस्थितियों को गहराई से समझें और ऐसा निर्णय दें जो सभी पक्षों के हित में हो।
अदालत ने यह भी कहा कि घरेलू हिंसा के मामलों में पीड़िता अक्सर सामाजिक दबाव और पारिवारिक झिझक के कारण खुलकर सामने नहीं आ पाती। कई बार उसके पास प्रत्यक्ष सबूत भी नहीं होते। ऐसे में अदालतों को परिस्थितिजन्य प्रमाण और गवाही पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए राहत भरा कदम है। यह संदेश देता है कि न्यायालय उनकी परिस्थितियों को समझते हैं और उनके साथ सहानुभूति रखते हैं। यह भी माना जा रहा है कि इस तरह की न्यायिक टिप्पणी आगे चलकर घरेलू हिंसा मामलों में न्याय की राह को आसान बनाएगी।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि अक्सर महिलाएं घरेलू हिंसा सहते-सहते टूट जाती हैं क्योंकि उन्हें यह डर रहता है कि उनके पास पर्याप्त सबूत नहीं होंगे। हाईकोर्ट का यह दृष्टिकोण महिलाओं को आगे आने और न्याय की मांग करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
यह फैसला न केवल पीड़िताओं के लिए उम्मीद की किरण है बल्कि समाज को भी यह संदेश देता है कि घरेलू हिंसा को लेकर उदासीनता नहीं बरती जा सकती। अदालत का यह दृष्टिकोण परिवारों में संवाद और जिम्मेदारी की भावना को भी बढ़ावा देगा।
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