खीरे की खेती घाटे का सौदा बनती जा रही.
किसानों को खीरे की फसल से उम्मीद थी मुनाफे की, लेकिन मंडी में गिरे रेट ने तोड़ी कमाई की उम्मीद…
हरियाणा : समेत देश के कई हिस्सों में खीरे की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। किसानों को उम्मीद थी कि इस बार गर्मियों की शुरुआत में खीरे के अच्छे दाम मिलेंगे, लेकिन बाजार में गिरे मंडी भाव ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। किसानों का कहना है कि इस बार खीरे की खेती पर काफी खर्च आया—बीज, खाद, सिंचाई, मजदूरी और पॉलिथीन शेड जैसी चीज़ों में हजारों रुपये खर्च हो गए। लेकिन जब खीरा तैयार हुआ और मंडियों में ले जाया गया, तो वहां दाम इतने गिर गए कि लागत निकालना भी मुश्किल हो गया।
खेती करने वाले कई किसानों ने बताया कि उन्होंने एक एकड़ में लगभग ₹60,000 से ₹80,000 तक की लागत लगाई थी। शुरुआत में खीरे के रेट ₹15 से ₹20 प्रति किलो तक मिल रहे थे, जिससे उम्मीद बंधी थी। लेकिन जैसे-जैसे सप्लाई बढ़ी, वैसे-वैसे दाम गिरते गए। अब हालात यह हैं कि कई जगहों पर ₹5 से ₹7 प्रति किलो तक रेट चल रहे हैं, जिससे किसानों को ना केवल नुकसान हो रहा है बल्कि उनका मन भी खेती से उठ रहा है।
खेती से जुड़े जानकारों का मानना है कि देश में कृषि उपज के लिए उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय न होना किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है। फल-सब्जियों की खेती मौसम के हिसाब से होती है और अगर सप्लाई ज्यादा हो जाए तो दाम अचानक गिर जाते हैं, जिससे मुनाफा तो दूर, लागत भी नहीं निकल पाती। खीरे के साथ भी इस बार यही हुआ है। किसान मंडियों के बाहर घंटों इंतजार करते हैं, लेकिन खरीदार कम और सप्लाई ज्यादा होने से उनकी उपज बिक नहीं पा रही।
कुछ किसानों ने स्थानीय अधिकारियों से मांग की है कि सरकार कोई स्थायी समाधान निकाले, जिससे फसल की बिक्री और दाम स्थिर रह सकें। साथ ही, कुछ किसानों ने सुझाव दिया है कि राज्य सरकार को सब्जियों के लिए MSP जैसे सिस्टम पर विचार करना चाहिए, जिससे किसानों को कम से कम लागत के बराबर दाम तो मिल सकें। वरना आने वाले समय में किसान खीरे जैसी जल्दी खराब होने वाली फसलें बोने से कतराएंगे।
कुल मिलाकर देखा जाए तो खीरे की खेती ने किसानों को इस बार काफी निराश किया है। मेहनत तो खूब लगी, लेकिन मुनाफा हाथ नहीं आया। ऐसी स्थिति में कृषि क्षेत्र में स्थायी और लाभकारी समाधान की आवश्यकता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।
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