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कर्ण के पूर्वजन्म से जुड़ा है कवच-कुंडल का राज, जो समय आने पर उनकी जान नहीं बचा सके

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महाभारत में भीष्म पितामह से लेकर अर्जुन तक कई वीर योद्धाओं ने युद्ध लड़ा, और इनमें से एक प्रमुख योद्धा कर्ण भी थे। कर्ण को जन्म से ही दिव्य कवच और कुंडल प्राप्त थे, और माना जाता था कि वे अर्जुन को भी टक्कर दे सकते थे। कर्ण के कवच और कुंडल का रहस्य उसके पूर्वजन्म से जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं इस रहस्य की कहानी।

 

 

कर्ण असल में कुंती का पुत्र था और सभी पांडवों में सबसे बड़ा भी था, लेकिन यह रहस्य केवल कुंती ही जानती थी। महाभारत के आदि पर्व में कर्ण के पूर्वजन्म की कथा का वर्णन मिलता है, जिसमें बताया गया है कि क्यों कर्ण के दिव्य कवच और कुंडल युद्ध के समय उसकी जान नहीं बचा सके।

कथा के अनुसार, दुरदुंभ (दम्भोद्भवा) नामक एक राक्षस ने देवताओं को अत्यंत परेशान कर रखा था। इस राक्षस को एक वरदान प्राप्त था कि उसे केवल वही नष्ट कर सकता है जिसने हजार साल की तपस्या की हो। राक्षस को सूर्य देव से 100 दिव्य कुंडल और कवच भी प्राप्त थे, जो तोड़ने वाले की मृत्यु सुनिश्चित कर देते थे। देवताओं की दीन-हीन स्थिति को देखते हुए, वे भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। भगवान विष्णु ने सुझाव दिया कि नर और नारायण, जो विष्णु के अंशावतार थे, से सहायता मांगी जाए।

नर और नारायण ने राक्षस से युद्ध का निर्णय लिया। पहले नर ने राक्षस से लड़ाई की और नारायण ने तपस्या की। लंबे संघर्ष के बाद, नर ने राक्षस का कवच तोड़ दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। हालांकि, नारायण की तपस्या के फलस्वरूप राक्षस पुनः जीवित हो गया। इस प्रक्रिया के दौरान नर और नारायण ने मिलकर राक्षस के 99 कवच तोड़े, लेकिन अंतिम कवच को तोड़ने में उन्हें सफल नहीं हो सके।

इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि कर्ण के कवच और कुंडल का रहस्य केवल उसके पूर्वजन्म की घटनाओं से जुड़ा हुआ था, और समय के बदलते सन्दर्भ में उनका प्रभाव सीमित रहा।

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