पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब जिले के रहने वाले विंग कमांडर रंजीत सिद्धू का नाम अब देश के वीरों की सूची में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया है। बचपन से ही आसमान में उड़ान भरने का सपना देखने वाले रंजीत ने अपने साहस, दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से भारतीय वायुसेना में एक अलग पहचान बनाई। हाल ही में उन्हें ऑपरेशन सिंदूर में उनके शौर्य और अदम्य साहस के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
रंजीत सिद्धू की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। साधारण परिवार में जन्मे रंजीत बचपन में ही विमानों की ओर आकर्षित हो गए थे। स्कूल की पढ़ाई के दौरान उन्होंने तय कर लिया था कि वे पायलट बनेंगे। एयरफोर्स में चयन के बाद उन्होंने कठिन ट्रेनिंग और मिशनों में हिस्सा लिया। उनके करियर का सबसे अहम मोड़ तब आया जब उन्होंने अंबाला एयरबेस में राफेल लड़ाकू विमान को सफलतापूर्वक लाकर इतिहास रच दिया। यह केवल तकनीकी कौशल ही नहीं, बल्कि अदम्य साहस और जिम्मेदारी का प्रतीक भी था।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उन्होंने अपनी सूझबूझ, त्वरित निर्णय क्षमता और अद्वितीय हवाई कौशल का प्रदर्शन किया। इस ऑपरेशन में उनकी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण थी कि उनके साथियों और वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें एक सच्चा योद्धा कहा। मिशन के दौरान उन्होंने न केवल अपने विमान को बेहतरीन तरीके से नियंत्रित किया, बल्कि पूरे ऑपरेशन को सफल बनाने में अहम योगदान दिया।
वीर चक्र प्राप्त करने के बाद रंजीत सिद्धू ने कहा कि यह सम्मान केवल उनका नहीं, बल्कि पूरे भारतीय वायुसेना का है। उन्होंने अपने माता-पिता, गुरुओं और साथियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह पुरस्कार उन्हें और अधिक जिम्मेदार बनाता है। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे बड़े सपने देखें और उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करें।
मुक्तसर में उनके परिवार और स्थानीय लोगों में खुशी की लहर है। गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि रंजीत ने न केवल अपने परिवार का नाम रोशन किया है, बल्कि पूरे पंजाब और देश का गौरव बढ़ाया है। छोटे-छोटे बच्चे अब उन्हें अपना आदर्श मान रहे हैं और आकाश को छूने के सपने देख रहे हैं।
रंजीत सिद्धू की यह यात्रा साबित करती है कि अगर इरादे मजबूत हों और मेहनत सच्चे दिल से की जाए, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता। उनके साहस और समर्पण की यह कहानी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
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