एसवाईएल नहर को हिमाचल रास्ते लाने के लिए सरकार पर दबाव हेतु हरियाणा में जागरूकता अभियान: जितेंद्र नाथ
सिंधु जल संधि खतम होने से चेनाब के 20 हज़ार क्यूसिक पानी से पूरे पंजाब, हरियाणा व राजस्थान तक की पानी की किल्लत दूर हो सकती है
चण्डीगढ़ : एसवाईएल नहर को हिमाचल प्रदेश के रास्ते से लाने के लिए संघर्षरत्त संस्था एसवाईएल हिमाचल मार्ग समिति ने हरियाणा राज्य में इस नहर की महत्ता और सरकार द्वारा इस मुद्दे की अनदेखी के खिलाफ जनजागरूकता अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है। अगले चार महीनों में गांवों, ब्लॉकों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में लोगों और छात्रों को इस मुद्दे पर जागरूक किया जाएगा।
समिति के अध्यक्ष जितेंद्र नाथ, जो हरियाणा के भिवानी जिले के निवासी हैं, ने आज चण्डीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर परियोजना हरियाणा और पंजाब के बीच राजनीतिक और कानूनी विवादों में उलझी हुई है। मंच ने इस नहर को शीघ्र बनाने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग सुझाया है जो हिमाचल प्रदेश में पड़ने वाले भाखड़ा डैम से शुरू होकर हिमाचल के ही रास्ते से होते हुए पंचकूला में टांगरी नदी तक तक होगा।
इस सुझाव को लागू करने से संवैधानिक संस्थाओं के बीच टकराव से बचा जा सकेगा और संघीय ढांचे की रक्षा भी होगी। जितेंद्र नाथ ने दावा किया कि मंच द्वारा सुझाया गया मार्ग हिमाचल प्रदेश की बंजर भूमि से होकर गुजरता है, जो सरकारी स्वामित्व वाली है और जिसे हिमाचल सरकार आसानी से स्थानांतरित कर सकती है। उन्होंने बताया कि भाखड़ा डैम से पानी तेज ढलान के कारण बहता है जिससे बिजली का उत्पादन होता है। यह पानी सतलुज नहर में जाकर बहता है। सतलुज नदी लगभग 11 किलोमीटर तक हिमाचल प्रदेश में बहती है, जहां से किसी भी बिंदु से एसवाईएल नहर को जोड़ा जा सकता है। उस बिंदु पर सतलुज नहर समुद्र तल से 1203 फीट की ऊंचाई पर है, पंचकूला 1000 फीट, अंबाला 900 फीट और जनसूई हेड 823 फीट की ऊंचाई पर है। इससे स्पष्ट है कि पानी सरलता से सतलुज नहर से जनसूई हेड तक बह सकता है।
जितेंद्र नाथ ने कहा कि यदि केंद्र सरकार की मंशा ठीक हो, तो एसवाईएल जल को एक वर्ष के भीतर दक्षिण हरियाणा तक पहुंचाया जा सकता है। इसके लिए केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मंच द्वारा प्रस्तावित मार्ग से पंजाब के किसानों को कोई नुकसान नहीं होगा और हरियाणा के जल हिस्से में भी कोई कटौती नहीं होगी। वकील जितेंद्र नाथ ने दावा किया कि उन्होंने इस वैकल्पिक मार्ग का गहन अध्ययन किया है जिससे एसवाईएल जल को शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण तरीके से हरियाणा तक लाया जा सके।
जितेंद्र नाथ ने बताया कि अगले चार महीनों में विभिन्न गतिविधियां आयोजित की जाएंगी और यदि सरकारों द्वारा एसवाईएल जल को हरियाणा तक लाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया जाएगा और प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
उन्होंने कहा कि यदि हरियाणा और केंद्र में बीजेपी सरकारें एसवाईएल जल समस्या का समाधान चाहती हैं तो उन्हें भाखड़ा डैम से बाड़ी (हिमाचल प्रदेश) तक और वहां से पिंजौर के रास्ते पंचकूला के पास टांगरी नदी तक नहर लानी चाहिए, जिसे जनसूई हेड तक ले जाया जा सकता है। उन्होंने एक डॉक्युमेंट्री के माध्यम से इस प्रस्ताव को समझाया और बताया कि जनसूई हेड से आगे नहर का निर्माण पहले ही पूरा हो चुका है। भाखड़ा डैम हरियाणा से लगभग 67 किलोमीटर की दूरी पर है जबकि पंजाब के रास्ते यह दूरी 156 किलोमीटर है।
उन्होंने सभी राजनीतिक दलों की आलोचना की जिन्होंने हरियाणा राज्य के गठन के बाद से ही एसवाईएल जल मुद्दे पर केवल राजनीति की है। उन्होंने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद यदि एसवाईएल जल पंजाब के माध्यम से लाया गया तो कुछ राजनीतिक दल किसानों को गुमराह करके पंजाब में आंदोलन खड़ा कर सकते हैं। मंच ऐसा कोई क़दम नहीं उठाना चाहता जिससे हरियाणा और पंजाब के लोगों के बीच सौहार्द बिगड़े।
उन्होंने चिंता जताई कि कांग्रेस, इनेलो और भाजपा ने एसवाईएल मुद्दे पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और इसे सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामला बताकर टाल दिया। उन्होंने कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि एसवाईएल नहर का निर्माण किया जाए जिससे ब्यास नदी का अतिरिक्त पानी दक्षिण हरियाणा के खेतों तक पहुंचाया जा सके।
समिति ने वर्ष 2017 में हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों को यह सुझाव भेजा था, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला। बाद में समिति ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की थी जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को मंच द्वारा सुझाए गए वैकल्पिक मार्ग से कार्यवाही शुरू करने का निर्देश देने की प्रार्थना की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि यह सरकार का विषय है, इसलिए मंच को सरकार से संपर्क करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि 29 जनवरी 1955 को पंजाब, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर के बीच जल वितरण पर समझौता हुआ था। 1966 में हरियाणा के गठन के बाद हरियाणा को पंजाब के जल से 3.5 मिलियन एकड़ फीट पानी आवंटित किया गया था जिसे एसवाईएल नहर के माध्यम से दक्षिण हरियाणा तक पहुंचाया जाना था। 1990 तक इस नहर पर कार्य चलता रहा लेकिन 2 जुलाई 1990 को एक मुख्य अभियंता, एक एक्सईएन और 22 मजदूरों की हत्या के बाद कार्य स्थगित कर दिया गया। 1996 में हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और 2002 में निर्णय आया, लेकिन उस पर कोई अमल नहीं हुआ। हाल ही में पंजाब सरकार ने एसवाईएल नहर के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना रद्द कर दी है और भूमि किसानों को वापस लौटा दी है। ऐसे में पंजाब सरकार के पास नहर निर्माण के लिए भूमि ही नहीं है और उसने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि उसके पास एसवाईएल नहर परियोजना के लिए जमीन उपलब्ध नहीं है।
सिंधु जल संधि खतम होने से चेनाब के 20 हज़ार क्यूसिक पानी से पूरे पंजाब, हरियाणा व राजस्थान तक की पानी की किल्लत दूर हो सकती है
जितेंद्र नाथ ने बताया कि अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने उन्होंने बताया कि अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने सिंधु जल संधि को खतम करने का कदम उठाया है उससे भी हरियाणा को फायदा हो सकता है यदि चेनाब के पानी को मंडी के नजदीक ब्यास तक लाया जाए तो वहां से पंडोह डैम व पोंग डैम के जरिये गोबिंद सागर में मिलाया जा सकता है। चेनाब के इस अतिरिक्त 20 हज़ार क्यूसिक पानी से पूरे पंजाब, हरियाणा व राजस्थान तक की पानी की किल्लत दूर हो सकती है।
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