आपातकाल की 50वीं बरसी पर सन्नाटा | लोकतंत्र की यादें ताज़ा
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आपातकाल की 50वीं बरसी पर सन्नाटा गूंजा

हरियाणा की अस्थायी जेलों की कहानियां आज भी रुला देती हैं….

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चंडीगढ़ : आज से ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 की वो रात थी, जब देश में लोकतंत्र को अचानक विराम दे दिया गया। 21 महीने तक चले इस आपातकाल ने भारत के हर कोने में हलचल मचाई थी, लेकिन हरियाणा इसका विशेष गवाह बना। दिल्ली से सटा होने के कारण यह राज्य उन शुरुआती इलाकों में था जहां असहमति को दबाने के लिए अस्थायी जेलें बनाई गईं, और लोगों को बिना वजह जेलों में ठूंसा गया।

वो दिन आज भी उन परिवारों के ज़ेहन में ताजा हैं, जिनके अपने रातों-रात उठा लिए गए थे। न मुकदमा, न सुनवाई। सिर्फ आदेश था शक है, पकड़ लो”।

हरियाणा के कई हिस्सों में – जैसे रोहतक, हिसार, अंबाला और पानीपत – बड़े-बड़े स्कूलों, सरकारी दफ्तरों और यहां तक कि पंचायत भवनों को जेलों में बदल दिया गया। वहां न बिजली ठीक थी, न पीने का पानी। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को महीनों तक सिर्फ इसलिए कैद रखा गया क्योंकि उन्होंने सवाल पूछे थे।

गुरुग्राम के निवासी और आपातकाल के समय युवा नेता रहे रघुबीर सिंह बताते हैं, “हमें एक पुराने स्कूल के कमरे में बंद किया गया था। बाहर ताले थे, भीतर डर। लेकिन सबसे ज्यादा तकलीफ इस बात की थी कि हमें अपनी बेगुनाही साबित करने का भी मौका नहीं दिया गया।”

कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने वो वक्त जेल में गुजारा, लेकिन आज भी अपने बच्चों से उस दौर की बात नहीं कर पाते। दर्द, अपमान और असहायता की वो परछाइयां अभी भी साथ चलती हैं।

आज, जब देश को आपातकाल की 50वीं बरसी याद आ रही है, हरियाणा के वे गुमनाम कारावास एक बार फिर चर्चा में हैं — न कि राजनीतिक बहस में, बल्कि मानवाधिकारों की कीमत याद दिलाने के लिए।

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