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आइवीएफ तकनीक से संतान पाने का बड़ा बाजार बना भारत

हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य विषेषज्ञ, डॉ नरेश पुरोहित, (सलाहकार – राष्ट्रीय प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम ) का IVF तकनीक के बढ़ते प्रयोग पर एक लेख

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नई दिल्ली/भोपाल: भारत आइवीएफ की वैश्विक राजधानी बनता दिख रहा है। कोरोना संक्रमण, घटती प्रजनन दर, बेरोजगारी, देर से शादी, खराब खानपान, अनियमित दिनचर्या व नशा बड़ा कारण है। सस्ते ट्रीटमेंट के चलते हर साल 25 हजार से अधिक विदेशी भारत में आइवीएफ कराते हैं। पहले से ही देश में 3 करोड़ जोड़े बांझपन से पीड़ित हैं। एम्स दिल्ली के हालिया अध्ययन के मुताबिक कोरोना के बाद 10-15% विवाहितों की प्राइवेट लाइफ प्रभावित हुई है। बच्चे पैदा करने में अक्षम महिला-पुरुष संतान प्राप्ति के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। आइवीएफ सेंटर इसका नाजायज फायदा भी उठा रहे है। गुजरात, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, झारखंड उत्तर प्रदेश और राजस्थान में कई ऐसे मामले आए, जहां इलाज के बहाने महिलाओं के अंडाणु निकालकर अन्य जोड़ों को बेच दिए गए।

इंडियन मेडियाल रिसर्च सेंटर की गाइडलाइन के अनुसार 21-55 आयुवर्ग के पुरुष स्पर्म, 23-35 वर्ष की एक बच्चे की मां अंडाणु दान कर सकती है। स्पर्म एग की क्यालिटी से कीमत तय होती है।

आइवीएफ सेंटर व स्पर्म एग बैंक के इस कारोबार में पैसे कमाने के फेर में अविवाहित युवक, युवतियां अपने स्पर्म या एग, कई-कई बार बेच रहे हैं। कानूनी पचड़ों से बचने के लिए वे नाम बदल कर अलग अलग सेंटरों या स्पर्म-एग बैंकों को सैंपल दे रहे हैं।

घटती प्रजनन दर आइवीएफ बाजार के बड़ने की वजह है। सुविधा और जरूरत के अनुसार माता-पिता बनने के फैसले, बच्या गोद लेने की प्रक्रिया से बचना भी वजह है।

विश्व में आइवीएफ से 90 लाख बच्चों का जन्म हो चुका है। देश में हर साल 1800 आइवीएफ क्लीनिकों में करीब 25 लाख महिलाओं का ट्रीटमेंट हो पाता, जरूरत 6 लाख को होती है।

साख के लिए कुछ भी करते आइवीएफ सेंटर : आइवीएफ की सफलता दर अभी भी 35% से कम है। जेनेटिक ‘डिफेक्ट के बहाने आइवीएफ सेंटर बेहिचक जेंडर टेस्ट कर लड़का पाने की चाह रखने वाले जोड़ों से 3 गुना रुपए वसूलते हैं। यह गैरकानूनी है। साख के लिए सेंटर अन्य पुरुषों के स्पर्म उपयोग से भी नहीं चूकते हैं।


*डॉ नरेश पुरोहित- एमडी, डीएनबी , डीआई एच , एमएचए, एमआरसीपी (यूके) एक महामारी रोग विशेषज्ञ हैं। वे भारत के राष्ट्रीय संक्रामक रोग नियंत्रण कार्यक्रम के सलाहकार हैं। मध्य प्रदेश एवं दूसरे प्रदेशों की सरकारी संस्थाओं में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम , राष्ट्रीय पर्यावरण एवं वायु प्रदूषण के संस्थान के सलाहकार हैं। एसोसिएशन ऑफ किडनी केयर स्ट्डीज एवं हॉस्पिटल प्रबंधन एसोसिएशन के भी सलाहकार हैं।

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