अष्टमी-नवमी पर कन्या पूजन कैसे करें..
जानिए कन्या पूजन की आसान और शुभ विधि….
नवरात्रि : के अंतिम दिनों में अष्टमी और नवमी तिथि का विशेष महत्व होता है। इन दोनों तिथियों पर कन्या पूजन की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि कन्याएं मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतीक होती हैं, इसलिए अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा की जाती है। इसे “कन्या पूजन” कहा जाता है और इसे करने से मां दुर्गा विशेष रूप से प्रसन्न होती हैं।
कन्या पूजन आमतौर पर सुबह के समय किया जाता है। सबसे पहले घर की साफ-सफाई की जाती है और पूजा स्थान को सजाया जाता है। मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाकर पूजा की जाती है। फिर कन्याओं को आमंत्रित कर उनके पैर धोए जाते हैं, तिलक लगाया जाता है, और उन्हें एक-एक कर पूजा स्थल पर बिठाया जाता है। इन कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर उन्हें फूल, अक्षत, चूड़ी, रिबन, बिंदी, चुनरी आदि भेंट की जाती है। इसके बाद उन्हें हलवा, पूड़ी और चने का पारंपरिक प्रसाद खिलाया जाता है।
कुछ स्थानों पर नौ कन्याओं के साथ एक लंगूर स्वरूप में एक बालक को भी शामिल किया जाता है, जिसे भगवान हनुमान का प्रतीक माना जाता है। यह पूजा न केवल धार्मिक दृष्टि से फलदायी मानी जाती है, बल्कि यह बालिकाओं के सम्मान और महत्व को भी दर्शाती है।
यदि आपके आसपास नौ कन्याएं उपलब्ध नहीं हैं, तो आप कम कन्याओं की भी पूजा कर सकते हैं। भावना और श्रद्धा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। कन्या पूजन में कन्याओं की उम्र आमतौर पर 2 से 10 वर्ष के बीच की मानी जाती है। पूजा के दौरान “या देवी सर्वभूतेषु…” जैसे मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है।
कई घरों में अष्टमी को कन्या पूजन किया जाता है, वहीं कुछ लोग नवमी को इसे करते हैं। दरअसल, दोनों ही तिथियां शुभ मानी जाती हैं और व्यक्ति अपनी सुविधा व परिवार की परंपरा अनुसार किसी भी दिन यह पूजा कर सकता है। कन्या पूजन के साथ-साथ भक्तजन इन दिनों व्रत रखते हैं, हवन करते हैं और देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं।
आज के आधुनिक समय में भी कन्या पूजन की यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक मान्यताओं को जीवित रखती है, बल्कि यह समाज में कन्याओं के सम्मान और महत्व को भी उजागर करती है। यह एक ऐसा अवसर है जब हम अपने बच्चों को भी भारतीय संस्कृति और नारी सम्मान का पाठ सिखा सकते हैं।
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