अमेरिकी टैरिफबाजी का नया दौर, क्या सीमा शुल्क में बड़ा बदलाव?
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अमेरिकी टैरिफबाजी का नया अध्याय: क्या सीमा शुल्क पर कुछ बड़ा होने वाला है?

मैकनले ने रखी ‘जैसे को तैसा’ नीति की बुनियाद, व्यापारिक तनाव बढ़ने के संकेत…..

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अमेरिका : में टैरिफ और सीमा शुल्क को लेकर एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। हाल ही में, मैकनले ने “जैसे को तैसा” नीति की नींव रखी, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि व्यापारिक मोर्चे पर अमेरिका कोई बड़ा कदम उठा सकता है। यह नीति विशेष रूप से उन देशों के खिलाफ इस्तेमाल की जा रही है, जिनके साथ अमेरिका का व्यापार संतुलन नकारात्मक रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला वैश्विक व्यापारिक संबंधों में नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है।

सूत्रों के अनुसार, अमेरिकी प्रशासन विभिन्न देशों से आयातित वस्तुओं पर नए टैरिफ लगाने पर विचार कर रहा है। चीन, भारत और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदार इस नीति से प्रभावित हो सकते हैं। अमेरिकी सरकार का तर्क है कि कई देशों द्वारा दिए जा रहे सब्सिडी और व्यापार में अपनाई जा रही अनुचित नीतियों की वजह से अमेरिकी उत्पादक कंपनियों को नुकसान हो रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए ‘जैसे को तैसा’ नीति लागू की जा रही है, जिसमें उन देशों पर जवाबी शुल्क लगाया जाएगा, जो अमेरिका के व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

इस नीति के तहत अमेरिकी कंपनियों और स्थानीय उद्योगों को संरक्षण देने की रणनीति अपनाई जा रही है। हालांकि, इसके विरोध में कई उद्योगपतियों और अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह कदम वैश्विक व्यापार युद्ध को और भड़का सकता है। अगर अमेरिका टैरिफ बढ़ाता है, तो प्रभावित देश भी जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।

इससे पहले भी अमेरिका कई मौकों पर टैरिफ नीतियों में बदलाव करता रहा है, लेकिन इस बार का घटनाक्रम अधिक आक्रामक दिखाई दे रहा है। मैकनले की पहल को देखते हुए अन्य व्यापारिक साझेदार भी सतर्क हो गए हैं और अपने-अपने जवाबी कदमों पर विचार कर रहे हैं। आने वाले दिनों में इस नीति का सीधा असर वैश्विक अर्थव्यवस्था, निवेश और व्यापारिक संबंधों पर पड़ सकता है।

अमेरिकी सरकार का कहना है कि यह नीति स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने और विदेशी प्रतिस्पर्धा को संतुलित करने के लिए आवश्यक है। हालांकि, व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम दुनिया के अन्य देशों को भी कड़े फैसले लेने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे व्यापारिक गतिरोध और अधिक जटिल हो सकता है।

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