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अनुसूचित जाति व्यक्ति को प्रताड़ित करने का आरोप

हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, प्रशासन से मांगी विस्तृत रिपोर्ट

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पंजाब अनुसूचित जाति से संबंधित एक व्यक्ति को अमानवीय तरीके से प्रताड़ित करने का गंभीर मामला सामने आया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि कुछ लोगों ने उसे तेजधार हथियारों के साथ धमकाया और पेशाब पिलाने की कोशिश की। इस मामले को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए प्रशासन से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।

घटना 25 जुलाई की दोपहर करीब साढ़े 12 बजे की बताई जा रही है, जब पीड़ित व्यक्ति, जो कि बठिंडा में एक लोन कंपनी में काम करता है, किसी जरूरी काम से बाहर गया हुआ था। उसी दौरान कुछ लोग तेजधार हथियार लेकर उसके दफ्तर पहुंचे और उसके बारे में पूछताछ करने लगे। जब उन्हें पता चला कि वह वहां मौजूद नहीं है, तो उन्होंने कर्मचारियों को धमकाया और गाली-गलौच की।

पीड़ित का आरोप है कि जब वह कुछ समय बाद लौटकर आया, तो आरोपितों ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। यही नहीं, उसने यह भी आरोप लगाया कि आरोपितों ने उसे जबरन पेशाब पिलाने की कोशिश की, जो कि न केवल अमानवीय बल्कि संविधान द्वारा संरक्षित मौलिक अधिकारों का भी घोर उल्लंघन है। घटना की जानकारी मिलते ही सामाजिक संगठनों और दलित अधिकार कार्यकर्ताओं में आक्रोश फैल गया। उन्होंने प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग की और दोषियों को कड़ी सजा दिलाने की मांग उठाई।

पीड़ित की शिकायत के आधार पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। वहीं, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भी मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए प्रशासन से इस पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने पूछा है कि यदि ऐसी घटनाएं दोहराई जाती हैं तो क्या राज्य सरकार के पास कोई प्रभावी प्रणाली है जिससे पीड़ितों को न्याय मिल सके। घटना ने एक बार फिर इस बात को उजागर कर दिया है कि हमारे समाज में आज भी जातिगत भेदभाव और अत्याचार की घटनाएं जड़ें जमाए हुए हैं। सरकारें जब तक सख्त रुख नहीं अपनाएंगी और त्वरित न्याय सुनिश्चित नहीं करेंगी, तब तक ऐसी घटनाएं रुकना मुश्किल हैं।

समाजसेवियों का कहना है कि यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि सामाजिक समानता और मानव गरिमा पर सीधा प्रहार है। राज्य सरकार से मांग की जा रही है कि न केवल आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाए, बल्कि पीड़ित को सुरक्षा और मानसिक सहयोग भी प्रदान किया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई में अदालत से यह उम्मीद की जा रही है कि वह प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करे और दलित समुदाय के लोगों को न्याय दिलाने के लिए एक मिसाल पेश करे।

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