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साउथ-नॉर्थ ब्लॉक: जहां प्रधानमंत्री नेहरू और उप-प्रधान मंत्री सरदार पटेल के दिन रात एक होते थे

शीघ्र ही यह दोनों इमारतें संग्रहालय में परिवर्तित होंगे, कर्तव्य मार्ग पर 3 भवन अब भारत का भविष्य लिखेंगे : विवेक शुक्ला*

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नई दिल्ली:  नॉर्थ और साउथ ब्लॉक भारत के शासन का केंद्र इसलिए रहे हैं क्योंकि ये देश के प्रशासनिक दिल की तरह काम करते हैं। साउथ ब्लॉक में प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय हैं, जबकि नॉर्थ ब्लॉक में गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय हैं।

स्वतंत्र भारत की दो सबसे खास सरकारी इमारतों में शामिल साउथ-नॉर्थ ब्लॉक का अब संध्याकाल शुरू हो गया है। राजधानी के रायसीना हिल पर बने नॉर्थ और साउथ ब्लॉक भारत के शासन का अहम हिस्सा रहे हैं। ये आइकॉनिक सचिवालय इमारतें भारतीय प्रशासन का केंद्र रही हैं, जो औपनिवेशिक और स्वतंत्र भारत के दौर में सत्ता और निरंतरता का प्रतीक बनीं। अब, जल्द ही ये दोनों इमारतें खाली होने वाली हैं। यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) साउथ ब्लॉक से कुछ सौ मीटर दूर बने नए एग्जीक्यूटिव एनक्लेव-1 में सितंबर 2025 तक शिफ्ट हो सकता है। वहीं, गृह मंत्रालय और कार्मिक मंत्रालय लगभग पूरी तरह करतव्य भवन-3 में स्थानांतरित हो चुके हैं, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महीने की शुरुआत में किया था।

बीते दौर के पन्नों को खंगालते हैं। अगस्त 1947। जैसे-जैसे 15 अगस्त यानी देश की आजादी का दिन, नजदीक आ रहा था, राजधानी के साउथ और नॉर्थ ब्लॉक के कुछ कमरों की बत्तियाँ लगभग पूरी रात जलती रहती थीं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री पंडित नेहरू अपने साउथ ब्लॉक के ऑफिस में स्टाफ के साथ दिन-रात काम कर रहे होते थे ताकि आजादी और देश के बंटवारे की प्रक्रिया को अंतिम रूप दे सकें। वहीं, नॉर्थ ब्लॉक में गृह मंत्री सरदार पटेल देर रात तक काम करते थे ताकि 562 रियासतों को भारतीय संघ में सुचारू रूप से 

शामिल किया जा सके। लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लैपिएर ने अपनी शानदार किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में उन दिनों के साउथ और नॉर्थ ब्लॉक का बेहतरीन तरीके से वर्णन किया है।

नॉर्थ और साउथ ब्लॉक भारत के शासन का केंद्र इसलिए रहे हैं क्योंकि ये देश के प्रशासनिक दिल की तरह काम करते हैं। साउथ ब्लॉक में प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय हैं, जबकि नॉर्थ ब्लॉक में गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय हैं। ये मंत्रालय आंतरिक सुरक्षा से लेकर आर्थिक नियोजन तक, राष्ट्रीय नीतियों के अहम पहलुओं को देखते हैं, जिससे ये इमारतें सरकार के कामकाज के लिए अहम रही हैं।

जब साउथ ब्लॉक भारत का नर्व सेंटर बन गया था… 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान साउथ ब्लॉक भारत का नर्व सेंटर बन गया था। यहाँ प्रधानमंत्री कार्यालय और रक्षा मंत्रालय थे। एक कमरे में ‘वॉर रूम’ बनाया गया था, जहाँ पूरे युद्ध की रणनीति और निगरानी होती थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और अन्य शीर्ष सैन्य अधिकारियों की अहम बैठकें यहीं होती थीं। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी का दृढ़ नेतृत्व और मानेकशॉ की बेबाक सैन्य सलाह इन कमरों में गूंजती थी। 13 दिन के युद्ध का हर पल, हर आदेश, और हर जीत की खबर सबसे पहले इस वॉर रूम तक पहुँचती थी। हाल ही के ऑपरेशन सिंदूर में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साउथ ब्लॉक के ऑफिस में भारत की रक्षा सेनाओं के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की थी।

अब इन दोनों में बनेंगे संग्रहालय। देशभर में शिक्षा के प्रसार- प्रचार के लिए काम करने वाली संस्था दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी ( डीबीएस) के संरक्षक सोलोमन जॉर्ज कहते हैं कि एक बार इनमें संग्रहालय शुरू होंगे तो हम भी अपने स्कूलों के बच्चों को यहां लेकर आएंगे ताकि वे उन दो इमारतों को देख लें जहां स्वतंत्र भारत के कई अहम फैसले हुए। डीबीएस ने दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में अनेक स्कूल और कॉलेज स्थापित किए हैं। गांधी जी के सहयोगी दीनबंधु सी.एफ.एंड्रयूज का संबंध भी डीबीएस से था। सोलोमन जॉर्ज राजघाट में होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभा का अभिन्न हिस्सा हैं।

1911 में राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित होने के बाद ब्रिटिश नौकरशाही के लिए बनाए गए ये ब्लॉक 1947 में स्वतंत्र भारत की सत्ता के केंद्र बन गए। विजय चौक पर हर साल होने वाला बीटिंग रिट्रीट समारोह, जो इन दोनों ब्लॉकों के बीच होता है, इनकी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अहमियत को और बढ़ाता है। सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास योजना के तहत 2025 के अंत तक इन्हें संग्रहालय में बदलने की योजना है, लेकिन इनकी वास्तुशिल्प और ऐतिहासिक कीमत उन्हें हमेशा प्रिय बनाए रखेगी।

संजय बारू अपनी किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में लिखते हैं, “1991 में भारत एक गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था। नॉर्थ ब्लॉक में वित्त मंत्रालय में प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एक ऐतिहासिक बजट तैयार किया, जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को हमेशा के लिए बदल दिया। बजट पेश करने से पहले पूरी गोपनीयता बरती गई थी। जब डॉ. मनमोहन सिंह ने संसद में अपना भाषण खत्म किया, तो उन्होंने विक्टर ह्यूगो के शब्दों को उद्धृत किया: ‘कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ गया है। ”

कितनी लागत आई थी इन इमारतों के निर्माण में :  इन शानदार इमारतों का निर्माण 1929 में 1.75 करोड़ रुपये की लागत से पूरा हुआ था। इन्हें खड़ा करने के लिए कई बिल्डरों को ठेका दिया गया था, जिनमें सर शोभा सिंह भी शामिल थे। नॉर्थ और साउथ ब्लॉक, प्रत्येक चार मंजिल ऊँचे और लगभग 1,000 कमरों वाले, क्रीम और लाल धौलपुर बलुआ पत्थर से बने हैं, जिसमें लाल रंग आधार बनाता है और क्रीम रंग दीवारों और गुंबदों को सजाता है।

वास्तुकला में यूरोपीय शास्त्रीय शैली के साथ भारतीय तत्व, जैसे मुगल-प्रेरित द्वार, जाली, छज्जे, और छतरियाँ शामिल हैं। हर्बर्ट बेकर ने इनको डिजाइन किया था। वे चोटी के आर्किटेक्ट थे और नई दिल्ली के चीफ आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस के सहयोगी थे।

बेकर ने भारत आने से पहले 1892 से 1912 तक दक्षिण अफ्रीका और केन्या में अनेक सरकारी भवनों और चर्चों के भी डिजाइन बनाए थे। पर उन्होंने यहां किसी चर्च का डिजाइन नहीं तैयार किया। जब लुटियंस संसद भवन का डिजाइन बना रहे तब दोनों में लगातार मतभेद रहने लगे थे। उन्होंने गंभीर रूख ले लिया था। बेकर चाहते थे कि संसद भवन का डिजाइन त्रिभुजाकार हो। पर लुटियंस गोलाकार इमारत खड़ी करने के हक में थे। अंत में लुटियंस के हिसाब से ही संसद भवन का निर्माण हुआ। आखिर उनकी सरपरस्ती में नई दिल्ली की सब सरकारी इमारतें बन रही थीं। (pics performancemagazine.og  & indiandefencereview.com)


*Veteran Journalist and Author,  Vivek Shukla. has a knack for unearthing hidden history of Delhi and metamorphosis of the city from ancient Mahabharata era into New Delhi, the seat of power of world’s largest democracy.

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