श्री रामचरितमानस
श्री रामचरित मानस के नायक श्रीराम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी श्रीहरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों । तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
श्री रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। सभी हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए श्री रामचरितमानस सबसे पवित्र धर्म ग्रन्थ है। ऐसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में लिखा था । इस ग्रन्थ को (हिंदी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है।
मूल रामायण वाल्मीकि जी द्वारा, संस्कृत में रचा गया था । गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा इसे प्रचलित अवधि भाषा में लिखा गया था । तुलसीदास जी द्वारा लिखे जाने के कारन ही इसे ‘तुलसी रामायण’ या ‘तुलसीकृत रामायण’ भी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण और श्री राम चरित मानस में कुछ अंतर भी है ।
श्री रामचरित मानस के नायक श्रीराम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी श्रीहरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों । तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने श्री रामचन्द्र के निर्मल एवं विशद चरित्र का वर्णन किया है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत रामायण को रामचरितमानस का आधार माना जाता है। यद्यपि रामायण और श्रीरामचरितमानस दोनों में ही राम के चरित्र का वर्णन है परंतु दोनों ही महाकाव्यों के रचने वाले कवियों की वर्णन शैली में उल्लेखनीय अन्तर है। जहाँ वाल्मीकि ने रामायण में राम को केवल एक सांसारिक व्यक्ति के रूप में दर्शाया है वहीं गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में राम को भगवान विष्णु का अवतार माना है।
प्रचलित अवधि भाषा में रचे जाने के कारन रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में ‘रामायण’ के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है।
श्रीरामचरितमानस १५वीं शताब्दी के कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया महाकाव्य है, जैसा कि स्वयं गोस्वामी जी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्या में विक्रम संवत १६३१ (१५७४ ईस्वी) को रामनवमी के दिन (मंगलवार) किया था। गीताप्रेस गोरखपुर के संपादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के अनुसार रामचरितमानस को लिखने में गोस्वामी तुलसीदास जी को २ वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था।
गोस्वामी जी ने श्रीरामचरितमानस को सात काण्डों में विभक्त किया है।
इन सात काण्डों के नाम हैं –
- बालकाण्ड
- अयोध्याकाण्ड
- अरण्यकाण्ड
- किष्किन्धाकाण्ड
- सुन्दरकाण्ड
- लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और
- उत्तरकाण्ड
छन्दों की संख्या के अनुसार बालकाण्ड और किष्किन्धाकाण्ड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे काण्ड हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में अवधी के अलंकारों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है विशेषकर अनुप्रास अलंकार का। यह दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद में लिखा गया है।
प्रत्येक कांड में श्लोक, दोहा, सोरठा, छंद एवं चौपाइयों की संख्या
बाल काण्ड: श्लोक- 7, दोहा- 341, सोरठा- 25, छंद- 39, चौपाई- 358
अयोध्या काण्ड: श्लोक- 1, दोहा- 314, सोरठा- 13, छंद- 13, चौपाई- 326
अरण्य काण्ड: श्लोक- 1, दोहा- 41, सोरठा- 6, छंद- 9, चौपाई- 44
किष्किंधा काण्ड: श्लोक- 1, दोहा- 30, सोरठा- 1, छंद- 2, चौपाई- 30
सुन्दर काण्ड: श्लोक- 1, दोहा- 59, सोरठा- 1, छंद- 3, चौपाई- 60
लंका काण्ड: श्लोक- 1, दोहा- 118, सोरठा- 4, छंद- 38, चौपाई- 117
उत्तर काण्ड: श्लोक- 4, दोहा- 126, सोरठा- 5, छंद- 14, चौपाई- 125
प्रतिदिन श्री राम चरित मानस का पथ करने से हमें मनवांछित फल की प्राप्ति होती है ।
श्री राम चरित मानस का पाठ कैसे करें ?
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