पंजाब की हस्तशिल्प परंपरा क्यों बुझी
फुलकारी, खेस और पंजा दरी का जादू अब फीका पड़ा, महिलाएं नहीं रहीं रुचिकर….
पंजाब : की पहचान सिर्फ इसके खेत, खाने और मस्ती भरे मिजाज तक सीमित नहीं है। यह भूमि अपनी सांस्कृतिक विरासत और हस्तशिल्प कलाओं के लिए भी जानी जाती रही है। एक समय था जब हर पंजाबी घर में महिलाओं की कढ़ाई, बुनाई और रंग-बिरंगे धागों से फुलकारी जैसे पारंपरिक वस्त्रों की रचना होती थी। लेकिन आज यह गौरवशाली परंपरा गुम होती जा रही है।
पंजाब की फुलकारी, खेस और पंजा दरी कभी यहां की ग्रामीण संस्कृति की जान हुआ करते थे। विवाह, त्योहार या कोई भी पारिवारिक अवसर हो, इन कलाओं का होना अनिवार्य समझा जाता था। लेकिन अब आधुनिकता की दौड़, बाजारवाद और समय की कमी ने इस हस्तशिल्प को हाशिए पर ला दिया है। आज की पीढ़ी की महिलाएं इन कलाओं से दूरी बनाती जा रही हैं।
पहले फुर्सत के समय में महिलाएं आपस में मिल-बैठकर फुलकारी बनाती थीं। यह न केवल रचनात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम था, बल्कि सामाजिक मेलजोल का भी जरिया था। लेकिन अब शहरीकरण, रोजगार की व्यस्तता और डिजिटलीकरण ने पारंपरिक रुझानों को बदल डाला है।
फुलकारी जैसी कला, जो एक समय पंजाब की शान थी, अब केवल स्मारिका दुकानों तक सीमित होकर रह गई है। खेस की जगह आधुनिक बेडशीट्स ने ले ली है और पंजा दरी अब शायद ही किसी घर में देखने को मिले।
हस्तशिल्पियों की अगली पीढ़ी को इससे जोड़ने के लिए प्रयासों की कमी भी एक बड़ा कारण है। न तो स्कूलों में इनके लिए कोई पाठ्यक्रम है और न ही सरकार की ओर से कोई ठोस योजना जो इसे पुनर्जीवित कर सके।
पंजाब की यह सांस्कृतिक धरोहर अगर ऐसे ही उपेक्षित रही तो आने वाले वर्षों में यह पूरी तरह विलुप्त हो सकती है। जरूरी है कि स्थानीय प्रशासन, कला संगठनों और युवाओं को मिलकर इस विरासत को दोबारा जीवित करने की दिशा में काम किया जाए।
Comments are closed.