क्यों वक्फ संपत्तियों पर सख्त हुई योगी सरकार…
उत्तर प्रदेश के कई शहरों में वक्फ की हजारों संपत्तियां, सरकार बड़े ऐक्शन की तैयारी में..
लखनऊ, उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार एक बार फिर सुर्खियों में है, इस बार वजह है वक्फ संपत्तियों को लेकर उठाया गया बड़ा कदम। राज्य सरकार अब वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की जांच और पुन: मूल्यांकन की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रही है। जानकारी के अनुसार, यूपी के कई शहरों में वक्फ की भारी संख्या में जमीनें दर्ज हैं और सरकार अब इनके रिकार्ड्स की बारीकी से जांच कर रही है।
राज्य सरकार को आशंका है कि वर्षों पहले जिन जमीनों को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया, उनमें से कई पर कब्जे या अनियमित तरीके से इस्तेमाल हो रहा है। लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, मुरादाबाद और मेरठ जैसे प्रमुख शहरों में वक्फ की सबसे अधिक संपत्तियां पाई गई हैं। कुछ जिलों में तो वक्फ बोर्ड के नाम दर्ज संपत्तियों की संख्या हजारों में है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सभी वक्फ संपत्तियों की जांच निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ की जाए। यदि कहीं अनियमितता पाई जाती है तो तुरंत कानूनी कार्यवाही की जाए। इसके तहत जिलाधिकारियों को आदेश दिए गए हैं कि वे अपने-अपने जिलों में वक्फ संपत्तियों की रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपें।
सरकार के इस कदम को लेकर राजनीति भी गर्मा गई है। विपक्षी दलों का आरोप है कि योगी सरकार इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देकर एक विशेष समुदाय को निशाना बना रही है। सपा और कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि सरकार को यदि जांच ही करनी है तो वह सभी प्रकार की सार्वजनिक संपत्तियों की जांच करे, केवल वक्फ पर ध्यान केंद्रित करना पक्षपातपूर्ण रवैया है।
हालांकि भाजपा का कहना है कि सरकार का उद्देश्य किसी समुदाय को टारगेट करना नहीं है, बल्कि पारदर्शिता और कानून का पालन सुनिश्चित करना है। पार्टी नेताओं ने कहा कि वर्षों से वक्फ बोर्ड के तहत कई संपत्तियों में गड़बड़ियों की शिकायतें मिल रही थीं, जिनकी अब जांच जरूरी हो गई है।
इस पूरे मामले में वक्फ बोर्ड की प्रतिक्रिया भी सामने आई है। बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि वे जांच के लिए तैयार हैं, लेकिन सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि कई जमीनें धार्मिक हैं और उनमें हस्तक्षेप से संवेदनशीलता बढ़ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई अनियमितता पाई जाती है, तो खुद बोर्ड भी उसके खिलाफ कार्रवाई करेगा।
वहीं, ज़मीनी स्तर पर देखा जाए तो इन संपत्तियों पर स्कूल, मस्जिद, कब्रिस्तान और समाजसेवी संस्थाएं भी संचालित हो रही हैं। ऐसे में अगर बड़ी कार्रवाई होती है, तो उसका सीधा असर आम जनता पर पड़ सकता है। यही कारण है कि कई सामाजिक संगठनों ने सरकार से अपील की है कि किसी भी कदम से पहले सभी पक्षों की राय ली जाए।
अब देखना होगा कि योगी सरकार की यह मुहिम कहां तक जाती है। क्या इससे वाकई पारदर्शिता आएगी या यह मामला भी राजनीतिक विवादों में उलझकर रह जाएगा।
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